ग़ज़ल
मुझको कहते आँख की किरकिरी देखिए।।
ख़ाक हो जाएगा सारा वज़ूद एक दिन,
कह दी बेटी, तो कहते सरफिरी, देखिए।।
कर लिया चाल यूँ तेज़ इन्सान ने,
फिर मेट्रो के आगे लड़की गिरी देखिए।।
पत्थर सा जिगर जिनका कल तक तो था,
आज छलक आईं आँखें डरी देखिए।।
जो मन को ना भाए क्या देखूँ उसे,
उनके चाहत की कारीगरी देखिए।।
आके ढक लेते हैं अपने पंखों तले,
परवरिश की ये बाजीगरी देखिए।।
शौक से गाली दो उस गुनाहगार को,
कहता 'केशव' खोटी-खरी देखिए।।
- केशव मोहन पाण्डेय
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