ग़ज़ल (भोजपुरी)
इतना नीचे ना गिरS कि शरम छोड़ द।
हार आ जीत के कुछ भरम छोड़ द।।
ऊहे कुइयाँ के पनिया मीठ लागत रहे,
कइसे कहब ऊ बाबा बरम छोड़ द।।
वसूल जिनगी के सबके अलग होखेला,
ऊ मुहब्बत छोड़ें, तू हरम छोड़ द।।
दरिया काग़ज़ के कश्ती से डरबे करी,
शर्त अइसन कुछ आपन करम छोड़ द।।
उनका अँखिया में बाटे नशा प्यार के,
चाल देखे के बिस्तर नरम छोड़ द।।
खाली उघटा-पुरान से बात ना बनी,
बात सुलझे बदे कुछ गरम छोड़ द।।
कइले 'केशव' के बेकल बहुत बाटे जे,
उनका बतिया के सगरो मरम छोड़ द।।
- केशव मोहन पाण्डेय
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