ग़ज़ल
दहशत के किस्सा त दर्दनाक होइबे करी।
गम के दौर में ख़ुशी इत्तेफाक होइबे करी।।
माचिस के तिल्ली कबले खैर मनाई आपन,
जरावल काम बा त खुद खाक होइबे करी।।
जेकर काम होखे भरम उतारल चौराहा पर,
ओकरो बदन पर कौनो पोशाक होइबे करी।।
सरेह सजल होई सिंगार के पिटारी से आज,
शहरी भइल मन में कुछ बात होइबे करी।।
जवान बिटिया बिआ गरीब घर-तिजोरी में,
दुआरी-दुआरी ऊ रगड़त नाक होइबे करी।।
उनका पाछे-पाछे जे कबो घूमल होइब बाबू,
जवार में आज तहरो धाक होइबे करी।।
मुहब्बत साँच बा त ई यकीन क ल तूँ,
देर-सबेर एगो तहरो डाक होइबे करी।।
- केशव मोहन पाण्डेय
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