ग़ज़ल
कतहूँ लइकन के लोरी सुनावे केहू।
याद बन अचके अंखियन में आवे केहू।।
नेह अइसन कहाँ जग में दोसर मिली,
ठंडा माड़-भात फूँक के खिआवे केहू।
कसूर कवनो होखे, ढाँप लेस अँचरा तरे,
माई से आ के जब ओरहन सुनावे केहू।
गुजार देहनी जिनगी के उमीर एतना,
अपना सामने तबो लइके बतावे केहू।
लपट फइलल बा सगरो जहां में अगर,
एकाध बूंद से केतना बुतावे केहू।
चेहरे के किताब पढ़ समझ जाए जे,
ओसे कइसे दोसर बहाना बनावे केहू।।
- केशव मोहन पाण्डेय
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