Jan 31, 2013


               गीत 
सच के साथे जे रहे, कबो डरेला नाहीं।
जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं।।

आन-बान शान रही, जाई चाहें प्राण हो,
गला कट जाये तबो कटी ना जुबान हो,
              इहे हवे पहचान हो,
            वीर भारती जवान हो।
हई करेब, ना करेब, कबो कहेला नहीं।
जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं।।

जीत मिले चाहें कबो मिल जाए हार त,
जिनगी में चाहीं सबके मीठ बोली,प्यार त,
             सहज व्यवहार त,
             काहें तकरार त।
खाली मट्ठा बदे लोग दही महेला नाहीं।
जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं।।

बतिए मेटा देला मतभेदवन के पाट के,
बतिए के कारन केहू रहेना कवनो घाट के,
             मत बोल बेफाँट के,
             बोल बात छाँट के। 
कई बतिए के घाव कबो भरेला नाहीं।
जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं।।
                           - केशव मोहन पाण्डेय 

Jan 30, 2013

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Jan 29, 2013

सन 2007 में भोजपुरी फिल्म "कब आई डोलिया कँहार" का लेखन और निर्देशन 

Jan 28, 2013


                   ग़ज़ल (भोजपुरी)


साथ आपन होखे या बेगाना चाहीं।
ख़ास बतिया कहेके बहाना चाहीं।।

मेहनत ह इबादत त घबड़ाए के का,
ज़िन्दगी में रुत हरदम सुहाना चाहीं।।

शौक पूरा करे में पसंद देखल जाला,
भूख लगला पर बसियो खाना चाहीं।।

सभे कहेला इहे कि प्यार पूजा हवे,
सचहूँ समझे बदे दोसर जमाना चाहीं।।

ना रहलो पर जेके एहसास करे सब,
खुद्दारी भरल अइसन दीवाना चाहीं।।

परई सबकर चढ़े हँड़िया पर रोजो,
आज इहे विचार वाला सयाना चाहीं।।
                        - केशव मोहन पाण्डेय 

Jan 26, 2013

Jan 25, 2013

                                         2004 में 'वतनपरस्त' नाटक का लेखन-निर्देशन 

   गीत    

महुआ मन महँकावे,
पपीहा गीत सुनावे,
भौंरा रोजो आवे लागल अंगनवा में।
कवन टोना कइलू अपना नयनवा से।।

पुरुवा गावे लाचारी,
चिहुके अमवा के बारी,
बेरा बढ़-बढ़ के बोले,
मन एने-ओने डोले,
सिहरे सगरो सिवनवा शरमावा से।।

अचके बढ़ जाला चाल,
सपना सजेला बेहाल,
सभे करे अब ठिठोली,
कोइलर बोले ले कुबोली,
हियरा हरषे ला जइसे फगुनवा में।।    

खाली चाहीं ना सिंगार,
साथे चाहीं संस्कार,
प्रेम पूजा के थाल,
बाकी सब माया-जाल,
लोग कहे चाहें कुछू जहानवा में।।
                

Jan 24, 2013


                      ग़ज़ल 

अब उनकी एक और दादागिरी देखिए।
मुझको कहते आँख की किरकिरी देखिए।।

ख़ाक हो जाएगा सारा वज़ूद एक दिन,
कह दी बेटी, तो कहते सरफिरी, देखिए।।

कर लिया चाल यूँ तेज़ इन्सान ने,
फिर मेट्रो के आगे लड़की गिरी देखिए।।

पत्थर सा जिगर जिनका कल तक तो था,
आज छलक आईं आँखें डरी देखिए।।

जो मन को ना भाए क्या देखूँ उसे,
उनके चाहत की कारीगरी देखिए।।

आके ढक लेते हैं अपने पंखों तले,
परवरिश की ये बाजीगरी देखिए।।

शौक से गाली दो उस गुनाहगार को,
कहता 'केशव' खोटी-खरी देखिए।।
                          - केशव मोहन पाण्डेय 

                  ग़ज़ल (भोजपुरी)
इतना नीचे ना गिरS कि शरम छोड़ द।
हार आ जीत के कुछ भरम छोड़ द।।

ऊहे कुइयाँ के पनिया मीठ लागत रहे,
कइसे कहब ऊ बाबा बरम छोड़ द।।

वसूल जिनगी के सबके अलग होखेला, 
ऊ मुहब्बत छोड़ें, तू हरम छोड़ द।।

दरिया काग़ज़ के कश्ती से डरबे करी,
शर्त अइसन कुछ आपन करम छोड़ द।।

उनका अँखिया में बाटे नशा प्यार के,
चाल देखे के बिस्तर नरम छोड़ द।।

खाली उघटा-पुरान से बात ना बनी,
बात सुलझे बदे कुछ गरम छोड़ द।।

कइले 'केशव' के बेकल बहुत बाटे जे, 
उनका बतिया के सगरो मरम छोड़ द।।
                       - केशव मोहन पाण्डेय 

                ग़ज़ल (भोजपुरी)
साँच के आँच के ई असर हो गइल।
बात अइसन खुलल कि ज़हर हो गइल।।

इश्क इबादत हवे, सबसे सुनले रहीं,
हमहूँ कइनी त काहें कहर हो गइल।।

रात बाटे अन्हरिया कहत रहले ऊ,
देखते-देखते दुपहर हो गइल।।

सोचनी, बहियाँ में भर के जिनगी जीएब,
प्यार के हार फेरु मगर हो गइल।।

कबो एक पल रहें ना हमरा से अलग,
आज लउकें ना, कवन कसर हो गइल।।

तहके पुतली बना के पलक में रखेब,
एही सपना प केतना ग़दर हो गइल।।

द्रोपदी के सभे आपन रहलें मौन तब,
आज ऊहे कथा दर-ब-दर हो गइल।।
                                  - केशव मोहन पाण्डेय 
                                              वर्ष 2005 में 'संवाद' पत्रिका का संपादन 

Jan 23, 2013



                      गीत 
हरदम नेहिया के बाण फेंकल क रs
चाहें कवनो नज़रिया से देखल क रs।।
           साँस तड़पे लागल 
           आस जागे लागल 
           प्रीत में गोली से 
           लोग दागे लागल,
आस दिल के पुराव, करीब आ के तू,
हमके रोकल क र, राह छेंकल क रs।। 
           रात होखे त का 
           केहू टोके त का 
           तहके चाहत रहेब 
           देबू धोखे त का,
सगरो चिंता मरे, फिकिर सब छूटे,
खाली तहके सोचीं, अइसे बेकल क रs।।
          बैर भूले सभे 
         मन-झूले सभे 
         प्यार ई देख के 
         फले-फूले सभे 
आदर सब में रहे, केहू कुछ न कहे,
काम अइसन क र, भले एकल क रs।।
                       - केशव मोहन पाण्डेय 
                         ग़ज़ल 


कतहूँ लइकन के लोरी सुनावे केहू।
याद बन अचके अंखियन में आवे केहू।।

नेह अइसन कहाँ जग में दोसर मिली,
ठंडा माड़-भात फूँक के खिआवे केहू।

कसूर कवनो होखे, ढाँप लेस अँचरा तरे,
माई से आ के जब ओरहन सुनावे केहू।

गुजार देहनी जिनगी के उमीर एतना,
अपना सामने तबो लइके बतावे केहू।

लपट फइलल बा सगरो जहां में अगर,
एकाध बूंद से केतना बुतावे केहू।

चेहरे के किताब पढ़ समझ जाए जे,
ओसे कइसे दोसर बहाना बनावे केहू।।

                         - केशव मोहन पाण्डेय 
  
हिंदी नाटक - 'एक और इंक़लाब' के लेखन-निर्देशन के लिए डायस अकादमी द्वारा (2005) सम्मानित!

                        ग़ज़ल 

दहशत के किस्सा त दर्दनाक होइबे करी।
गम के दौर में ख़ुशी इत्तेफाक होइबे करी।।

माचिस के तिल्ली कबले खैर मनाई आपन,
जरावल काम बा त खुद खाक होइबे करी।।

जेकर काम होखे भरम उतारल चौराहा पर, 
ओकरो बदन पर कौनो पोशाक होइबे करी।।

सरेह सजल होई सिंगार के पिटारी से आज,
शहरी भइल मन में कुछ बात होइबे करी।।

जवान बिटिया बिआ गरीब घर-तिजोरी में,
 दुआरी-दुआरी ऊ रगड़त नाक होइबे करी।।

उनका पाछे-पाछे जे कबो घूमल होइब बाबू,
जवार में आज तहरो धाक होइबे करी।।

मुहब्बत साँच बा त ई यकीन क ल तूँ,
देर-सबेर एगो तहरो डाक होइबे करी।।
                           - केशव मोहन पाण्डेय 

Jan 22, 2013

                  मैं लघु-फिल्म 'लास्ट ईयर' के शूटिंग के दौरान निर्देशन के बाद अभिनय-दल के साथ।
                              मेरे द्वारा लिखित एवं निर्देशित नाटक - 'कर्फ्यू' का एक दृश्य 

              ग़ज़ल 

खुशहाल जिनगी भी जहर हो जाला।
दिल के दुआ जब बेअसर हो जाला।।

लाख जतन कइला पर भी मिले ना मंजिल,
डगमगात कदम जब कुडगर हो जाला।।

सुन्न अंखियन से छलक जाला समुन्दर,
हिया में याद के जब कहर हो जाला।।

झोहे केतनो अन्हरिया साँझ के बेरा त का,
उजास होइए जाला जब सहर हो जाला।।

गरूर केतनो करे केहू मातल जवानी पर,
एक दिन उमीरिया के असर हो जाला।।

जिनगी में आवेला अइसन ठाँव कई,
सगरो जिनगिया ओही के नज़र हो जाला।।
                                      - केशव मोहन पाण्डेय 

Jan 21, 2013


                            ग़ज़ल 
मेरी किस्मत की लाचारी का सहारा बन जा।
मेरा कोई नहीं प्यारा, तू प्यारा बन जा।।

गर दिया दर्द मैं, कुबूल है गुस्ताखी वो मुझे,
ना कहो, जग छोड़ के आवारा बन जा।।

रुसवाइयों का दौर, बड़ी लम्बी सज़ा है दोस्त,
नज़रों को बुलंद कर लो, नज़ारा बन जा।।

मिल जाती है राह में कभी ऐसी मंजिल भी,
कहते, छोड़ गाँव, शहर सारा बन जा।।

तमन्ना है तेरे पहलू में सर रख के सोऊँ,
इनायत कर के ओ अफ़साना दुबारा बन जा।।
                                   - केशव मोहन पाण्डेय 

माँ बहुत बड़ी होती है

इस बड़े शहर में
कितना ओछापन है
अब पता चलता है
रहकर तुमसे दूर
छोटी - छोटी इच्छाओं को
पूरा न कर पाने में
हो कर मजबूर
कितनी बार तो छलता हूँ
अपने आप को
कि अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ
अब मै बड़ा हो गया हूँ
तब सोचता -
मैं कितना ओछा हूँ
तेरे सामने अभी बहुत छोटा हूँ
तू अभिलाषाओं की पूजा है
शिवाले की घंटी
गंगा की धारा
मेरे होने का निमित्त भी तू
तुझसे ही सारा पसारा
उम्र ढलने से
तू भले खड़ी नहीं होती है
फिर भी माँ बहुत बड़ी होती है
- केशव मोहन पाण्डेय




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