बात सोमवार की है। विद्यालय में प्रथम सत्रीय परीक्षा का अंतिम चरण चल रहा है। मैं सुबह-सुबह आठ बजे ही रिलीवर की ड्यूटी में एक कमरे में बैठा था। कुछ देर बाद शायद कक्षा पाँच की एक नन्हीं, दुबली सी छात्र गुलाबी नए फ्रॉक में अपनी एक सह-पाठिनी के साथ हाथ में एक टॉफी का ट्रे लिए आई। 'टुडे माय बर्थडे सर।'
विद्यालय में बर्थडे बेबीज़ अपने अध्यापक/अध्यापिकाओं को टॉफी देते हैं और उनका आशीर्वाद लेते है। मैं आठवीं, नौवीं और दसवीं की कक्षाओं में ही पढ़ता हूँ। सो उन कक्षाओं में कभी जाना नहीं होता।
मैंने उस नन्हीं बेटी को शुभकामना और आशीर्वाद दिया। चली गई। मैं अपने काम में व्यस्त हो गया। सुबह में रिलीवर की ड्यूटी करीब डेढ़ घंटे की होती है। वैसे तब मैं कक्षा आठवीं का पेपर चेक कर रहा था। करीब आधे घंटे बाद फिर से वह लड़की अपनी किसी अन्य सहेली के साथ आई और अपने उन्हीं शब्दों को दुहराई - 'टुडे माय बर्थडे सर।'
'मैं बोला यस, आई नो।'
'सर, टॉफ़ी ले लीजिये।'
मैंने बोला, - 'अभी तो आई थी। मैं ले चूका हूँ।'
तपाक से हँसी और बोली, - 'सर, ओ मैं नहीं थी, मेरी ट्विन्स सिस्टर थी।'
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। वह भी अपनी जुड़वा बहन की तरह नन्हीं, दुबली सी छात्र गुलाबी नए फ्रॉक में अपनी एक सह-पाठिनी के साथ हाथ में एक टॉफी का ट्रे लिए आई थी। मुझे कुदरत की करिश्मों के साथ ही एक सुखद अनुभूति हुई। लगा कि काश ये दोनों मेरी बेटियाँ होतीं। मुझे हमेशा ही आत्मिक प्रसन्नता मिलती। ऐसा लगा कि आज मुझे किसी अच्छे कर्म का सुफल मिला है। ऊपर वाले ने मेरे किसी छोटे कर्म का बड़ा उपहार दिया है।
-------------- क्या सच में वही प्रसन्नता मिलती? तो लोग ऐसी ख़ुशी देने वाली बेटियों को बोझ क्यों समझते है?------ जो भी हो, अब जब भी वह वाक़या याद आता है, दिल से उन दोनों परियों को आशीर्वाद देता हूँ। तब मन में अनचाहे भी एक ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है।
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