कालीन की बुनावट, भाषा की शालीनता, जटील से जटील परिस्थितियों में भी जीवन की जटीलता, दूर-दूर तक फैले खेतों की हरितिमा, ऊर्वर मिट्टी की गंध के बीच बाग-बगीचे और बहादूरी का नमूना है उत्तर-प्रदेश के भदोही के जमालापुर का ‘पट्टी’ गाँव। यहाँ की संस्कृति भारतीयता को परिलक्षित करती है, तो भोजपुरी बोली मधुरता को। खाने की थाली ठेंठ भोजपुरिया स्वाद से भरी रहती है तो रीति-रिवाजों का ताना-बाना भी एक अपना आकर्षण पैदा करता है। इस गाँव का एक अपना ही ठाट है। यहाँ एक के खेत की सब्जी अनेक के चूल्हे पर पकने की परिपाटी है। एक के आँसू को पोंछने के लिए अनेक के आँचल के कोर तैयार रहते हैं। यहाँ पर एक के पीड़ा के विष को पीने के लिए अनेक शिव तैयार मिलेंगे। सरसता, समरसता, सेवा, सहयोग, समृद्धि और स्नेह के मानचित्र पर दिखता हुआ ‘पट्टी’ गाँव के अनेक सुरमाओं में से एक संतान रोहित सिंह भी हैं।
उनका परिवार पाँच पुश्तों के संयुक्त परिवार का एक उदाहरण है। उनका पूरा परिवार तो मुंबई में रहता है, मगर यहाँ भरपूर खेती है, अपना घर है। सभी लोग छुट्टियाँ मनाने मुंबई और अमेरिका से यहाँ आते हैं। रोहित सिंह के छोटे भाई अमेरिका से कानून की पढ़ाई कर के आज मुंबई में एक बहुत ही सफल और सम्मानित वकील हैं। वे स्वयं विगत पंद्रह वर्षों से अमेरिका में रहते हैं। रोहित सिंह अमेरिका के सेरिटस, कैलिफोर्निया में एक इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में फाउण्डर मेम्बर के साथ ही एक्जक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट हैं। अमेरिका की चकाचैंध जिंदगी के अनुभवी रोहित सिंह को देखने पर आश्चर्य होता है कि जमालापुर के अपने ‘पट्टी’ गाँव में आने पर खिल जाते हैं।
‘पट्टी’ के उत्तर दिशा का बृहद् खलिहान वैसे तो वर्ष भर बच्चों, नौजवानों की धमाचौकड़ी से गुलजार रहता है, मगर जब उन नौजवानों का एक नौजवान भाई रोहित सिंह अमेरिका से गाँव पहुँचते हैं तो क्रिकेट, कबड्डी और गिल्ली-डंडा के साथ खलिहान अधिक किलकारियाँ मारने लगता है। ‘पट्टी’ के पश्चिम दिशा में स्थित ग्राम देवी के मंदिर की घंटियाँ अधिक मुखर हो जाती हैं। कई बार उन सभी तथाकथित खिलाडि़यों के लिए समवेत् खाना बनता है। पाँती सजती है और एक साथ जब पहले निवाले का कौर उठता है तो उस दृश्य को देखकर अमेरिका में रहने वाला इस गाँव का बेटा अपनी माटी, अपनी मातृभाषा और अपनी संस्कृति के सम्मान में हृदय से नत हो जाता है।
सात समंदर पार अमेरिका में भी रोहित सिंह अपनी भाषा और संस्कृति से बेइंतहां जुड़े रहते हैं। वे ‘भोजपुरी एसोसिएशन आॅफ नार्थ अमेरिका’ अर्थात ‘बाना’ (BANA) संस्था के अध्यक्ष हैं तथा ‘भोजपुरी परिवार’ के संस्थापकों में से हैं। सन् 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अन्य भाषाओं के साथ भोजपुरी को भी मान्यता दी है। उनका प्रस्ताव है कि इसे अमेरिकन भी सीखें। जैसा कि हम जानते हैं, भोजपुरी को करीब सोलह देशों के लगभग 150 करोड़ लोग बोलते हैं। ‘भोजपुरी परिवार’ और ‘बाना’ संस्थाएँ उन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए अपना कार्य कर रही हैं। रोहित सिंह पिछले दिनों भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में ठहरे थे। भोजपुरी के प्रति उनके सेवाभाव, समर्पण और संवेदना से प्रेरित होकर मैंने उनका साक्षात्कार लिया। प्रस्तुत है उस साक्षात्कार का मुख्य अंश -
प्रश्न - सबसे पहले मैं यह जानना चाहूँगा कि आपकी संस्था ‘बाना’ किस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करती है?
उत्तर- हमलोग अनेक प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं, जिससे अपनी भाषा और संस्कृति का विकास हो। इसी के बहाने अपना भोजपुरी समाज एक स्थान पर मिलता है। जैसे, टेलिस में हम लोग ‘एक शाम भोजपुरी के नाम’ करते हैं। इस बार हम लोग पूरे डेढ़ महिने का कजरी पर कार्यक्रम करते हैं। यह कार्यक्रम अमेरिका के कई शहरों में आयोजित कर के भोजपुरी संस्कृति को हम विस्तृत करने वाले हैं। दीपावली का उत्सव भी साथ मनाते हैं। ‘भोजपुरी परिवार’ और ‘बाना’ लाॅस एन्जलिस, न्यूयार्क, सेंट फ्रांसिसको आदि में अनेक कार्यक्रमों को आयोजित करता रहता हैं। हम होली मिलन का कार्यक्रम बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। इस बार के कार्यक्रम में भारत से भी कई अतिथियों को आमंत्रित किया गया है।
प्रश्न - ‘बाना’ और ‘भोजपुरी परिवार’ दोनों स्ंस्थाएँ किन उद्देश्यों को लेकर काम करती हैं? थोड़ा विस्तार से बताएँ।
उत्तर - ‘भोजपुरी परिवार’ का उद्देश्य है कि विश्वभर में भोजपुरी भाषा की जितनी संस्थाएँ हैं, उनको एक छत के नीचे लाकर एक जुटता प्रदान करना। वैसे तो हर आदमी, हर संस्थाएँ अपने स्तर पर काम कर रही हैं, परन्तु कई बार ऐसा होता है कि किसी संस्था ने कोई कार्य किया, किसी दूसरे देश में कोई दूसरी संस्था ने भी वहीं काम किया। अनुभवों के आदान-प्रदान की कमी के कारण पहले कार्य में हुई गलतियाँ भी होती जाती हैं। हमारा प्रयास यह होगा कि पूरे विश्व में कोई और भी उससे सीखकर उसे अगले स्तर पर ले जाए, न कि प्रयास करे। विश्वभर में भोजपुरी के लिए मिलकर प्रयास करने के लिए हमारी संस्थाएँ ‘बाना’ और ‘भोजपुरी परिवार’ काम कर रही हैं।
प्रश्न - आपके अनुसार भारत में भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा मिलने में सबसे बाधक तत्त्व क्या हैं?
उत्तर - इसके लिए अनेक लोग, अनेक संस्थाएँ तो प्रयास कर रही हैं, मगर अपने-अपने स्तर पर। अगर सब एक साथ मिलकर प्रयास करें तो मुझे नहीं लगता है कि कोई बाधा आएगी। अपने यहाँ इसके लिए एकजूट होकर एक निर्देशन में प्रयास नहीं हो रहा है। इसके लिए लोगों को एक साथ जोड़ने की आवश्यकता है, न कि अलग करने की। स्वार्थपरक राजनैतिक विचारधाराएँ संगठित नहीं होने देतीं।
प्रश्न - विश्व के लगभग सोलह देशों में भोजपुरी बोली जाती है। यहाँ भी कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाई भी जाती है। आपके विचार से एक छात्र भोजपुरी क्यों पढ़े?
उत्तर - मेरी पढ़ाई-लिखाई मुंबई में हुई है। मेरा एक्जक्यूटिव एजुकेशन हार्वर्ट विश्वविद्यालय से है। मैंने विश्व की नंबर एक थंडरवर्ड्स स्कूल आॅफ ग्लोबल मैनेजमेंट से एक्जक्यूटिव में एम.बी.ए. किया। इन सब के बीच अगर मुझे किसी बात का सबसे अधिक गर्व है तो यह है कि आज मैं भोजपुरी बोल सकता हूँ, लिख सकता हूँ, पढ़ सकता हूँ। मैं भारत में आने पर जितना भोजपुरी बोलता हूँ, उससे कई गुना अधिक अमेरिका में बोल लेता हूँ। इस बात का मुझे गर्व है। अतः आज के छात्रों को अपनी पहचान, साहित्य, संस्कृति के साथ साथ भाशा के ज्ञान के लिए भोजपुरी को पढ़ना चाहिए।
प्रश्न - क्या आपकी संस्था भोजपुरी को अमेरिकियों में भी पहुँचा रही है?
उत्तर - जी बिल्कुल। मेरे साथ मेरे अमेरिकी मित्र टाइलर मोर हैं। (अपने साथ आए अमेरिकी मित्र से मुखातिब होकर) इनका यह उद्देश्य है कि एक वर्ष के अंदर ये बातचीत करने लायक भोजपुरी सीख लें। यह भोजपुरी की मिठास है, भाषा का भाव है, स्ंस्कृति का जुड़ाव है। अमेरिका में हमारी संस्था का प्रयास है अमेरिकी भी इसके प्रति आकर्षित हों और हम धीरे-धीरे सफल भी हो रहे हैं। इसका कारण है कि भोजपुरी भाषा में ही आकर्षण है। अपनत्व है।
प्रश्न - कहा जाता है कि हमारी संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति में रंगते जा रही है। आप तो अमेरिका में रहते हैं, फिर भी भोजपुरी संस्कृति और भाषा के विकास के लिए तहे-दिल से प्रयासरत हैं। आप स्वयं को पाश्चात्य प्रभाव से कैसे बचा लिए? कृपया विस्तार से बताएँ।
उत्तर - मैं आपको बताऊँ कि विदेश में रहकर विदेशी हो जाना सबसे आसान है और सबसे कठिन काम अपनी संस्कृति से जुड़ा रहना है। मैं एक संयुक्त परिवार में पला-बढ़ा हूँ। आज से दस-पंद्रह साल पहले जब मैं अमेरिका गया था, उस समय अकेला रहना पड़ता था। उस समय जब मैं दाढ़ी बनाता था, तब आँखों से आँसू रूकते नहीं थे। मन में हमेशा बेचैनी रहती थी कि कोई मिलता कि उससे अपनी भाषा में बात करता। उस समय जो अपनत्व का अभाव रहा, वह व्यक्तिगत रूप से अनुभव करने के बाद लगा कि मेरे जैसा कोई दूसरा न अनुभव करे। और अपने क्षेत्र से जो लोग आते हैं, उन सभी को पूरा सहयोग मिले। उन्हें मेरे जैसा एकाकीपन महसूस न हो। उन्हें पारिवारिक वातावरण मिले। यहीं मेरा उद्देश्य रहा है। यहीं सब अनुभव करने के बाद मैंने वेस्टर्न कल्चर में रहकर भी अपनी भोजपुरी के लिए कुछ करने का प्रण लिया है।
प्रश्न - अमेरिका में रह रहे भोजपुरी भाषियों की कोई पहचान?
उत्तर - पहली विशेषता तो यह है कि उन सब में भोजपुरी के प्रति जागरूकता है। मैंने तो देखा है कि अमेरिका तो दूर है, लोग दिल्ली, मुंबई में भी अपनी पहचान नहीं बता पाते कि ‘मैं भाुजपुरिया हूँ', मगर वहाँ हम सब जागरूकता और गर्व के साथ जब आपस में मिलते हैं तो भोजपुरी में बातें करते हैं। अपनी पहचान बनाते हैं। बनारस, जौनपुर से अधिक हमलोग लाॅस एंजलिस में लिट्टी-चोखा का कार्यक्रम आयोजित करते हैं। हम लोग वहाँ अपनी भोजपुरिया पहचान को एन्ज्वाॅय करते हैं। सबलोग एक साथ बैठकर फाग-चैता गाते हैं। होली के दिन सुबह लोग सफेद कपड़ा पहनकर आते हैं। होली की शाॅपिंग होती है। अपनी मिट्टी से जुड़ा सब कुछ होता है वहाँ।
प्रश्न - भोजपुरिया लोगों और क्षेत्र के प्रति आपका क्या नजरिया है?
उत्तर - अपने भोजपुरी क्षेत्र को बहुत विकास की आवश्यकता है। इन्फ्रास्टक्चर की आवश्यकता है। जागरुकता की आवश्यकता है। 1990 में मेरे गाँव की सड़क जैसे थी, आज भी वैसे ही है। भोजपुरी क्षेत्र का लोकसभा का लगभग 100 सीट है। हमें अपने नेताओं पर दबाव डालना चाहिए। जब हमारा विकास होगा, तभी हम अपनी पहले की पहचान के चक्रव्यूह से निकल पाएँगे।
प्रश्न - आपके अनुसार वर्तमान समय में सिनेमा और साहित्य में से सबसे अधिक किसके माध्यम से भोजपुरी संस्कृति का विकास हो रहा है?
उत्तर - भोजपुरी सिनेमा जितना विकास नहीं कर रहा, उससे अधिक फूहड़ता परोस रहा है। पर भोजपुरी साहित्य, लोक-साहित्य साहित्य का विस्तार हो, तो लोग असली भोजपुरी संस्कृति को जानेंगे। अपना भोजपुरी साहित्य जितना समृद्ध है, उसे उतनी लोकप्रियता नहीं मिली। इसके लिए लोगों में खरीदकर पढ़ने की आदत होनी चाहिए। अपने यहाँ तो एक अखबार को 100 लोग पढ़कर सौ प्याली चाय पी लेते हैं, परन्तु अखबार, साहित्य को खरीदते नहीं हैं। मैं तो सभी भोजपुरियों से यह कहना चाहूँगा कि लोग अखबारों, पत्रिकाओं आदि के लिए भले ही विज्ञापन न दें, लेकिन खरीद कर अवश्य पढ़ें। इस प्रकार साहित्य को जिंदा रखने के लिए समाज को जागरुक होना होगा। हम लोग सात समंदर पार अपनी भोजपुरी भाषा, सभ्यता और संस्कृति को समृद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। वैसे तो भोजपुरी की एक संस्कृति लड़ने की है। हम चाहते हैं कि लड़ने की संस्कृति खत्म हो, इसलिए हमने ‘भोजपुरी परिवार’ संस्था बनाया। लोग आपसी वैमनस्य को छोड़कर एक साथ सकारात्मकता के साथ चर्चा करते हुए साहित्य और संस्कृति को समृद्ध एवं विकसित किया जा सकता है।
प्रश्न - आने वाले समय में आपके संस्था की कार्य-योजना क्या है?
उत्तर - होली मिलन का आयोजन, कजरी का कार्यक्रम आदि के साथ ही भोजपुरी साहित्यकारों को अतिथि रूप में वहाँ बुलाकर संदर्भ-चर्चा आदि के आयोजन की कार्य-योजना है। आने वाले समय में हम भोजपुरी क्षेत्र में काम करने वालों को सम्मानित करेंगे। उन्हें पुरस्कृत भी किया जाएगा।
प्रश्न - इससे अलग मैं यह जानना चाहता हूँ कि इस बार गाँव में आप सबसे अधिक किससे प्रभावित हुए?
उत्तर - गाँव आने पर मैं अधिकांश समय घर के बाहर ही रहता हूँ। खलिहान में बच्चों के साथ क्रिकेट आदि खेलता हूँ। कई शाम वहीं पर सामूहिक खाना बनता है। परन्तु जब अपने गाँव के पोखरा को देखता हूँ तो मन भारी हो जाता है। उस पोखरा को विकास के नाम पर आधा भरकर सड़क बना दिया गया है। अब उसमें पानी नहीं है। मैं बचपन में कई बार उसमे नहाया हूँ। आज उसे ऐसे देखकर दुख होता है।
प्रश्न - आपकी संस्था द्वारा भारत में क्या किया जा रहा है? यहाँ के लोगों को आप कैसे जोड़ रहे हैं?
उत्तर - जी, सही कहें तो अभी हम अमेरिका में ही अपने कार्य का विस्तार कर रहे हैं। यहाँ से जो लड़के वहाँ जाते हैं, उनकी पढ़ाई वगरह में सहज वातावरण बनाने में मदद करते हैं। वहाँ किराए पर घर आदि दिलाने में ‘भोजपुरी परिवार’ और ‘बाना’ का हर तरह से मदद रहता है। हम आस-पास के काॅलेजों में छात्रों के लिए शुद्ध भारतीय खाने की पार्टी रखते हैं और हमेशा उनके संपर्क में भी रहते हैं। आने वाले दिनों में ‘भोजपुरी परिवार’ के माध्यम से हम यहाँ भी लोगों को जोड़ेंगे।
अब शायद रोहित सिंह के फ्लाइट का समय हो रहा था। मैंने उनके मन की बेचैनी भाँप ली। मैंने भी अपनी ओर से उन्हें साधुवाद दी और अपनी भोजपुरी कहानी-संग्रह ‘कठकरेज’ की कुछ प्रतियाँ दी। हम दोनों पुनः मिलने के वादे के साथ विदा हुए।
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- केशव मोहन पाण्डेय (फरवरी,2014)
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