ग़ज़ल
करते हैं वो परवाह ज़माने की।
उम्मीद कैसे करूँ उनका साथ पाने की।।
दिल का दर्द आँखों में उभर आता है,
जब करता कोई बात आशियाने की।।
वादा करके जाके बैठे हैं संसद में,
बात कर रहे फिर वादा निभाने की।।
गुलिस्ता खाक़ किया सर्द हवाओं ने,
पहल कौन करेगा खुशबू सजाने की।।
रहे सलामत कैसे बेटी हर घर में,
कोशिश जारी उनकी उसे तड़पाने की।।
मुखौटों की कारीगरी का असर देखिए,
रोज़ बदलते है पैंतरा हमें लुभाने की।।
आज भी अदब है जुबां में बच्चों के,
दिल में बेचैनी है अपने गाँव जाने की।।
- केशव मोहन पाण्डेय
No comments:
Post a Comment