Jun 7, 2015

कुतर्क छोड़िये


कृपया एक मिनट समय दीजिये -
     "सुना है मैगी मे थोडा रासायन बढ गया, इसलिए उस पर बैन लगेगा....
     तम्बाकू, सिगरेट और शराब मे सरकार को, उम्र बढाने के कौनसे
     विटामिन, प्रोटीन दिखे जिनके लाईसेन्स वो रोज जारी कर रही है.".

    लोग मैगी पर बैन के विरोध में उपरोक्त तर्क दे रहे हैं। मैं अपने उन भाइयों से बताना चाहूँगा कि ‘बस दो मिनट’ में तैयार होने वाली मैगी आपके नौनिहालों की सेहत भी दांव पर लगा सकती है। खाद्य संरक्षा व औषधि प्रशासन (एफएसडीए) ने हाल ही बाराबंकी के एक मल्टी स्टोर से लिए गए मैगी के नमूनों की जांच कोलकाता की रेफरल लैब से कराई। जांच में यह नमूना फेल हो गया और इसमें मोनोसोडियम ग्लूटामेट नाम का एमिनो एसिड खतरनाक स्तर तक पाया गया। मैगी में प्रयोग किये गए रसायन एमएसजी की मात्रा का मानक 2.5 रखा गया है और कंपनी 17.65 प्रयोग कर रही है, जो बच्चों के लिए बेहद नुकसानदायक है। एफएसडीए एक्ट के तहत मोनोसोडियम ग्लूटामेट का प्रयोग किए जाने वाली सामग्री के रैपर पर इसकी मौजूदगी साफ-साफ दर्ज करनी होती है। साथ यह भी लिखना होता है कि 12 साल से कम उम्र के बच्चे इसका कतई प्रयोग न करें।एमीनो एसिड श्रेणी का मोनोसोडियम ग्लूटामेट केमिकल वाली खाद्य सामग्री बच्चों की सेहत दांव पर लगा सकती है।यह केमिकल खाने से बच्चे न केवल इसके एडिक्ट हो सकते हैं बल्कि दूसरी चीजें खाने से नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं। मैगी खाने वाले छोटे बच्चों के शारीरिक विकास पर भी असर पड़ता है। मोनोसोडियम ग्लूटामेट बच्चों की पाचन क्षमता खराब कर देता है। इससे बच्चों में पेट में दर्द, रोटी-सब्जी, फल खाने पर उल्टी आने, शरीर में सुस्ती, गर्दन के पीछे की नसों के कमजोर होने से स्कूली बस्ते तक का भार न उठा पाने और याददाश्त कमजोर होने की शिकायत हो सकती है। 
    जहाँ तक उपरोक्त उत्पादों की बात है, यह तो सभी जानते हैं कि तम्बाकू, सिगरेट और शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लोग तो इस व्यसन को जानबूझ कर अपनाते है। दूसरी बात कि लोग भले स्वयं इस व्यसन में डूब जाते हैं, मगर अपनी संतानों को तो दूर रखते हैं और मैगी को हम खुद ही बच्चों को दे रहे हैं। तब मुझे उपर्युक्त तर्क फालतू और खुद से ही बेमानी लगता है। इस हाल में भी तम्बाकू, सिगरेट और शराब आदि पर 60 प्रतिशत हिस्से में वैधानिक चेतावनी लगी रहती है और यहाँ तो नेस्ले कंपनी अपनी गलती तक नहीं मान रही है।
    फिर भी बच्चों की बात है। सोचना तो पड़ेगा ही। सोचिये! तर्क के साथ सोचिये। कुतर्क छोड़िये। 
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                                                                          - केशव मोहन पाण्डेय 

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