Jul 5, 2015

सोशल नेटवर्किंग साइट्स और युवा-वर्ग


   आज का दौर युवाशक्ति का दौर है। भारत में इस समय 65 प्रतिशत के करीब युवा हैं। इन युवाओं को बड़ी ही सक्रियता से जोड़ने का काम सोशल मीडिया कर रहा है। युवा वर्ग में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का क्रेज दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा है। युवाओं के उसी क्रेज़ के कारण आज सोशल नेटवर्किंग दुनिया भर में इंटरनेट पर होने वाली नंबर वन गतिविधि बन गया है। एक परिभाषा के अनुसार, ‘सोशल मीडिया को परस्पर संवाद का वेब आधारित एक ऐसा अत्यधिक गतिशील मंच कहा जा सकता है जिसके माध्यम से लोग संवाद करते हैं, आपसी जानकारियों का आदान-प्रदान करते हैं और उपयोगकर्ता जनित सामग्री को सामग्री सृजन की सहयोगात्मक प्रक्रिया के एक अंश के रूप में संशोधित करते हैं।’ सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं की जिंदगी का एक अहम अंग बन गया है। यह सही है कि इसके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के देश और दुनिया के हर कोने तक पहुँचा सकते हैं, परन्तु इससे अपराधों में भी वृद्धि हुई है।
    विगत दिनों मेरे विद्यालय में बच्चों के लिए ‘सोशल नेटवर्किंग साइट्स एवं साइबर क्राइम’ पर आधारित एक कार्यशाला आयोजित किया गया था। कार्यशाला ले रहे थे देश के जाने माने साइबर एक्पर्ट रक्षित टण्डन। देश के लाखों लोगों की तरह रक्षित जी की प्रतिभा का मैं भी कायल हूँ। उनके चाहने वालों में से एक मैं भी हूँ। उनके प्रस्तुति की मेधा और ज्ञान की गरिमा से मैं भी आकर्षित रहता हूँ। उस कार्यशाला ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं लिखने को बेचैन हो गया। लिखने बैठा तो कई बातें सामने आयीं। उन्हीं में से पता चला कि एक अध्ययन में यह दावा किया दावा किया गया है कि युवा वर्ग सोशल साइट्स में फेसबुक को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। निर्यातक कंपनी टी.सी.एस. की ओर से कराये गये सर्वे में युवाओं की सोशल साइट्स के बारे में प्रतिक्रिया जानने के बाद बताया गया कि फेसबुक को सबसे ज्यादा किशोर पसंद करते हैं।
    सर्वे से पता चला है कि फेसबुक के बाद युवाओं को गूगल प्लस और ट्विटर में रुची है। यह सर्वे 14 शहरों में कक्षा आठ से कक्षा 12 तक के 12,365 विद्यार्थियों से लिए गये राय पर आधारित हैं। सर्वेक्षण में शामिल लगभग 90 प्रतिशत विद्यार्थियों का कहना है कि वे फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं और फेसबुक उन्हें काफी पसंद है। वे छात्र किताबों को पढ़ने से अधिक सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपना समय बिताते रहते हैं। उसी सर्वे से ज्ञात होता है कि 65 प्रतिशत छात्रों ने गूगल प्लस तथा 44.1 प्रतिशत ने ट्वीटर के इस्तेमाल की बात कही है। इस सर्वेक्षण के अनुसार इसमें शामिल 45.5 प्रतिशत विद्यार्थियों का कहना है वे अपने स्कूली काम को निपटाने के लिए भी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का इस्तेमाल करते हैं। उनके लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स सबसे उपयोगी साबित होता है। जहाँ तक पढाई का प्रश्न है तो विकिपीडिया 63.1 प्रतिशत के साथ पहले नंबर पर है। यह एक सार्थक और सकारात्मक पक्ष है।
    भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों में सोशल मीडिया ने सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं बल्कि कई सामाजिक व गैर-सरकारी संगठन भी अपने अभियानों को मजबूती दी है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स राजनैतिक पहलुओं को भी समझने और राजनैतिक विचारधाराओं को समझने में भी अमह भूमिका का निर्वहन कर रहा है। सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं रह गया है, वह सामाजिक सोच और धार्मिक कट्टरता को भी स्पष्ट करने का माध्यम है। सोशल मीडिया सामाजिक कुण्ठाओं, धार्मिक विचारों पर अपना पक्ष तो रखता ही है, जिन देशों में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, वहाँ भी अपनी बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है। आज दुनिया का हर छठा व्यक्ति सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा हैं। वर्तमान में यह सोशल मीडिया लोगों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया हैं। हम अगर किसी से नाराज हैं, किसी की बातों का प्रत्यक्ष प्रत्युत्तर नहीं दे पाते हैं, किसी ने आपको प्रसन्नता दी, किसी ने आपका दिल तोड़ा, कुछ अच्छा या बुरा खाए, किए, आज का युवा हर अगले मिनट अपना स्टेटस अपडेट करता रहता है। हमें जिसकी अज्ञानता पर आश्चर्य होता रहता है, वह भी पचास तार्किक सिद्धांतों से अपना प्रोफाइल भर देता है। सोसल साइट्स आज मन की भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम ही नहीं, मन को जोड़ने का भी साधन है। मन का राग-द्वेष, पीड़ा-शूल सब कुछ सहन करते ये अभिव्यक्ति के माध्यम कुंठित और प्रफुल्लित हृदय की भी अभिव्यक्ति हैं। अभिव्यक्ति के इन्हीं माध्यमों को दस्तावेज के तौर पर देखें तो लोगों की बेबाक एवं अवाक् टिप्पणियों से शब्दों का महत्त्व और मायने साफ हो जाता है। साफ हो जाता है कि कितने मायने रखते हैं वे शब्द जो हमारे मुखारबिंद से निकलते हैं और कितना उनका असर होता है सामने वाले पर और खुद अपने ही व्यक्तित्व पर।
    युवाओं के जीवन में सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। अगर इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा जारी आंकड़ों की माने तो भारत के शहरी इलाकों में प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति सोशल मीडिया का किसी-न-किसी रूप में प्रयोग करता है। इसी रिपोर्ट में 35 प्रमुख शहरों के आंकड़ों के आधार पर यह भी बताया गया कि 77 प्रतिशत उपयोगकर्ता सोशल मीडिया का इस्तेमाल मोबाइल से करते हैं। सोशल मीडिया तक पहुँच कायम करने में मोबाइल का बहुत बड़ा योगदान है और इसमें भी युवाओं की भूमिका प्रमुख है। भारत में 25 साल से अधिक आयु की आबादी 50 प्रतिशत और 35 साल से कम आयु की 65 प्रतिशत है। इससे देखते हुए आँकड़े बताते हैं कि भारत में सोशल मीडिया पर प्रतिदिन करीब 30 मिनट समय लोगों द्वारा व्यतीत किया जा रहा है। इनमें अधिकतम कालेज जाने वाले विद्यार्थी (82 प्रतिशत) और युवा (84 प्रतिशत) पीढ़ी के लोग शामिल हैं। सोशल साइट्स ने स्कूली दिनों के साथियों से मिलवाया तो आज देश-दुनिया के कोने में रहने वाले मित्र भी एक-दूसरे को फेसबुक पर ढूँढ़ रहे हैं। सोशल मीडिया के द्वारा जिनसे वास्तविक जीवन में मुलाकातें भले ही न पाये पर सोशल साइट्स पर हमेशा जुड़े रहते हैं। सोशल मीडिया की सफलता इससे भी देखी जा सकती है कि परंपरागत मीडिया भी अब फेसबुक व ट्विटर जैसे माध्यमों पर न सिर्फ अपने पेज बनाकर उपस्थिति दर्ज करा रही है, बल्कि विभिन्न मुददों पर लोगों द्वारा व्यक्त की गयी राय को इस्तेमाल भी कर रही है। मैं स्वयं करीब 70 प्रतिशत ऐसे लोगों से जुड़ा हूँ, जिनसे प्रत्यक्ष रूप से कभी मिला नहीं। परन्तु हमारी आदतें, हमारी अभिरूचि, हमारा सोच आदि में मेल है और हम चैटिंग, व्हाट्सएप आदि पर अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। मेरे कई साहित्यिक अभिरूचि के मित्रों की प्रतिक्रियाएँ मुझे प्रभावित करती हैं और कइयों के विचारों का मैं समर्थन भी करता हूँ।
    फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप, ऑरकुट, गूगल़, इंस्टाग्राम, पिनइंटेरेस्ट, ब्लॉग आदि सोशल मीडिया के और न जाने कितने ही रूप इन दिनों इंटरनेट की मायावी दुनिया में शुमार हो चुके हैं और इनके उपयोग करने वालों की संख्या भी रोज बढ़ती जा रही है। आज के इंटरनेट आधारित समय में हम वर्चुअल वर्ल्ड में जीते हैं, जिसका कोई ठोस अस्तित्व नहीं होता, जिसमें दिन या रात का कांसेप्ट नहीं होता, जिसमें कभी भी छुट्टी नहीं होती, ना ही कभी तालाबंदी होती है। यानी ये 24 गुणे 7 की शैली दुनिया के हर कोने के लोगों को हर पल आपस में जोड़े रखने में सक्षम है। सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। सीमाओं से परे है। बहुत हद तक उम्र और संवेदनाओं से परे भी। इनके जरिए कहीं भी चार लोग उठते-बैठते नहीं देखे जा सकते। लेकिन सोशल मीडिया के जरिए इस प्रक्रिया को महसूस किया जा सकता है क्योंकि ये दुनिया सदैव जीवंत है। हर पल इसके जरिए हम किसी से भी जुड़ सकते हैं, बातें कह सकते हैं, अपनी सुना सकते हैं, उसकी सुन सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि ठोस रूप में आमने-सामने न होने की वजह से आपस में कोई असहज स्थिति नहीं आ सकती। एक-दूसरे में हाथापाई या सिर-फुटव्वल नहीं हो सकता। इससे बेलगाम तरीके से एक-दूसरे को कुछ भी कहने, गाली-गलौच तक की सुविधा आसान है। ये भी सुविधा है कि ऐसी स्थिति में जिससे बात करना या जिसकी बात सुनना न चाहें, उसे अनफ्रेंड कर दें, या ब्लॉक कर दें। सोशल मीडिया ने जीवनशैली को बहुत ही प्रभावित किया है। आज परिवार में चार सदस्यों के मिलने पर बातें नहीं होतीं, विचारों का आदान-प्रदान नहीं होता। सब मोम का पुतला बन कर अपने हेंडसेट्स के जरिए सोशल बनने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। यह आज की विडंबना है कि हम पारिवारिक तो बन नहीं पाते और सोशल बनने की होड़ में लगे रहते हैं।
    जिस तरीके से इंटरनेट पर मेल और चैटिंग की सुविधा ने पारंपरिक डाक व्यवस्था और टेलीफोन को किनारे कर दिया है, उसी तरीके से अब इंटरनेट आधारित सोशल मीडिया भी पारंपरिक सामाजिक व्यवहार में कई तरह के बदलाव लाता दिख रहा है। इस सिलसिले में सबसे बड़ा मुद्दा है समय का। काफी लोगों की शिकायत रहती है कि सोशल मीडिया उनका समय बर्बाद करता है। आलसी बना देता है। परोक्ष रूप से आपकी जेब भी काट लेता है क्योंकि आज सोशल मीडिया पर जब सक्रिय रहते हैं तो इसका हिसाब रख पाना बेहद कठिन होता है कि असल में इंटरनेट का कितना चार्ज सर्विस प्रोवाइडर कंपनियाँ वसूल रही हैं और कई बार जब महीने का बिल आपके हाथ में आता है, तो आप हिसाब जोड़ते फिरते हैं कि आखिर कैसे बिल इतना बढ़ गया। इतना ही नहीं, हम सोशल साइट्स पर वास्तविकता को छुपाना चाहते हैं, अपनी कल्पनाओं को दिखाने में लगे रहते हैं। देश में कई ऐसी घटनाएँ सामने आयी हैं कि एक 35-40 साल का युवा 20-22 साल अपनी उम्र डालकर तथा कोई स्मार्ट सा फोटो डाल कर अपना प्रोफाइल बनाता है। उसकी प्रस्तुत करने की बेजोड़ क्षमता से आकर्षित होकर कई टीन एजर लड़कियाँ मित्र बना लेती हैं, बन जाती हैं। बात में मिलना-मिलाना, शादी का झाँसा और फिर शारीरिक संबंध। ऐसे युवाओं से कहना चाहूँगा कि यार दोस्ती ही करनी है तो परिचितों से क्यों नहीं? नए-नए पोज़ का सेल्फी सेकेण्ड में सोशल साइट्स पर डाल दिया जाता है। किसी अपरिचित मित्र का कमेन्ट आता है ‘वाॅउ’। आप रिप्लाई करते हो ‘थैंक यू’। फिर अनाप-सनाप कमेंट। जरा सोचो कि क्या राह चलते कोई लड़का तुम्हें देखकर ‘वाॅउ’ करे तो तुम ‘थैंक यू’ बोलोगे? अगर कोई आपके प्रोफाइल फोटो पर ‘क्या हाॅट है’ कमेंट करता है तो आप दिल या स्माइल का सिममबल भेजते हो, मगर वहीं लड़का आपके सामने आकर बोले तो आप उसे छेड़ने की जुर्म में अंदर करवा दोगे। जरा सोचिए कि क्या हम इतना भी रियल नहीं रह गए। सोशल साइट्स पर अभद्र कमेंट करना उतना ही अपराध है जितना प्रत्यक्ष।
    अक्सर युवावर्ग में ऐसा देखा जाता है कि वह सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रहता है। दोस्तों से गप्पें लड़ाने में, लड़कियों को पटाने की कोशिश में, या फिर गेमिंग और ऐसी हरकतों में जिनसे उनके करियर या जिंदगी में कोई फायदा तो नहीं ही हो सकता। ऐसे चंद, बिरले ही युवा हैं, जिनकी सोशल मीडिया पर सक्रियता उनके लिए किसी तरह से लाभकारी साबित हुई हो, चाहे काम-काज या नौकरी के सिलसिले में या फिर निजी जीवन के किसी पहलू में। ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं, जिनमें सोशल मीडिया के अधिकाधिक इस्तेमाल से किसी व्यक्ति का भला हुआ हो। सोशल मीडिया पर दोस्ती बढ़ाकर लड़कियों को ठगे जाने के मामले रोज ही सामने आते हैं। दो-चार दिल सोशल मीडिया के जरिए भले ही आपस में जुड़ गए हों, लेकिन न जाने कितने ही दिल टूटने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। कई मेट्रोमोलियल साइट्स पर अपना प्रोफाइल कुछ और बनाते हैं और होते कुछ और हैं। आये दिन इस प्रकार से ठगे जाने की शिकायतें आती रहती हैं। कई ऐसी घटनाएँ हैं जहाँ हम स्वयं को अच्छा और धनी दिखाने के चक्कर में लोगों की महँगी गाडि़यों के सामने अपनी सेल्फी लेकर डाल देते हैं और सामने वाले का नियत बदल जाता है तथा अपहरण और फिरौती जैसी घटनाएँ सामने आ जाती हैं। गुजरात की घटना प्रमाण है इसका। अतः युवावर्ग को सावधानी के साथ सोशल मीडिया का उपयोग करना चाहिए। अगर हम लंदन, न्यूयार्क या कनाडा छुट्टियाँ मनाने जा रहे हैं तो हमें इसे अपडेट करते समय भी सावधान रहना चाहिए।
    सोशल मीडिया के इस्तेमाल के कई आयाम हैं। कई लोग ये भी कह सकते हैं कि सोशल मीडिया उनके लिए काफी लाभकारी है। निस्संदेह, यह मेरे लिए भी अधिकांशतः लाभकारी सिद्ध हुआ है। यदि किसी को अपनी बात रखनी है, तो उसके लिए यह एक बढि़या मंच है, जहाँ पर हम अपने विचारों पर तुरंत प्रतिक्रिया भी पा जाते हैं। जिस पर हमारे कथित दोस्त और दुश्मन भी आपकी राय जान सकते हैं। हमारे विचारों से परिचित हो सकते हैं और उस पर अपना नजरिया पेश कर सकते हैं। कारोबारियों के लिए सोशल मीडिया अपने ब्रांड प्रमोशन का जरिया बन गया है। पेज बनाकर उसे लाइक करने और करवाने की कोशिशें प्रमोशन के फंडे में शामिल हो गई हैं। राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के लिए भी सोशल मीडिया अपनी बात लोगों के सामने लाने का एक सशक्त औजार बन गया है और सिर्फ अपनी बात सामने रखने का ही नहीं, उस पर फीडबैक हासिल करने का भी ये एक बड़ा जरिया है, क्योंकि किसी पक्ष की ओर से कोई बात फेसबुक या ट्विटर पर कही जाती है तो जल्द से जल्द उस पर प्रतिक्रियाएँ आनी शुरु हो जाती हैं। वैसे कई बार स्वयं को असहाय अनुभव करने पर ये सोशल साइट्स हमारे सहयोगी सिद्ध होते हैं। अभी हाल ही में एक प्रतियोगिता के लिए एक नाटक की तैयारी चल रही थी। कल सुबह 7 बजे रिर्पोटिंग है और शाम को 7 बजे एक छात्रा के पिता ने शहर से बाहर जाने की विवशता बता कर मना कर दिया। मेरी क्या दशा हुई होगी, आप सहज कल्पना कर सके हैं। फिर एक छात्रा के पिता से बात हुई, वे तैयार हुए और मुझे स्क्रीप्ट मेल करने को बोले। तबतक रात का 10 बज चुका था। फिर उन्होंने बताया कि प्रिंट तो नहीं हो पाएगा। वहाँ व्हाट्सएप ने साथ दिया। कई बार कुछ विचार आते हैं और तत्काल फेसबुक और ट्वीटर पर अपडेट कर के हम दूसरों की राय ले लेते हैं। अभी हाल ही में मुझे अपने गृहनगर में एक कार्यक्रम में बोलना था मगर कोई स्क्रीप्ट नहीं था। मेरा हेंडसेट था और उसी मुद्दे पर मैं अपने ब्लाॅग पर लिख चुका था। तुरन्त अपने उस पोस्ट को ओपेन किया और एक पसंदीदा वक्ता का प्रमाण दे दिया। कई बार अपने ज्ञान को दिखाने के लिए भी गुगल आदि का उपयोग मैं धड़ल्ले से करता रहता हूँ।
    युवाओं से मैं बतना चाहूँगा कि आज हम लाख प्रयास करें तब भी सोशल मीडिया से दूर नहीं रह सकते। रहना भी नहीं चाहिए। समय के साथ गतिशील रहना ही एक जागरूक युवा की पहचान है। बस हमें थोड़ा सावधान रहना चाहिए जिससे कि कोई हमें चिट न करे। हम किसी को चिट न करे। हमें ध्यान रखना चाहिए कि सोशल मीडिया पर आकर्षक दिखने वाला प्रोफाइल कोई आवश्यक नहीं कि वास्तव में वैसा ही हो। हमें सोशल साइट्स का उपयोग अपने या किसी और के जीवन का बंटाधार करने में नहीं, उसे सँवारने में लगाना चाहिए।
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                                                                         – केशव मोहन पाण्डेेय

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