Jun 5, 2015

मानव की बंदगी

















ज़िन्दगी केवल शहरों से नहीं है
गाँवों से है
गुनगुनाती धूप से है
डरावनी बरसाती रातों से है
और पेड़ों की छावों से है।
 ज़िन्दगी फूल है
पत्ती है
शाखा और तना है
ज़िन्दगी पानी है
जंगल है
जंगल भी घना है।
ज़िन्दगी पेड़ों की टहनी है
टहनी पर चिड़िया है
पर्यावरण के साथ
हम चढ़ सकते सीढियाँ हैं
प्रकृति से अलग
न जीवन है
न उसकी कल्पना है
साथ है स्वच्छ पर्यावरण तो
जिंदगी सबसे कलात्मक अल्पना है
आओ बचाएँ पर्यावरण
तो अक्षुण ज़िन्दगी होगी
चिरंतन काल तक तब
मानव की बंदगी होगी।
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- केशव मोहन पाण्डेय









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