लड़की
लड़की चिड़िया बनकर
उड़ान भरती जा रही है आकाश में
और पंख मारती है
अनंत छूने को ।
लड़की नदी की लहर बनकर
बहती जा रही है विराट की ओर।
लड़की किरण बनकर
घेरती जा रही है -
कवि-कल्पित स्थान को।
लड़की स्त्री बनकर
बरसती है नेह की बदली जैसी
और, लड़की
बन रही है सब कुछ।
परन्तु लड़की
आज भी नहीं बोल पा रही है ठीक से ,
लड़की, आज भी धरती बनकर
बिछती जा रही है
पाँवों के नीचे।
-----------
- केशव मोहन पाण्डेय
09015037692
Its really a nerve touching poem!
ReplyDelete