माँ और मेरी भूमिका ( कविता )
माँ !
तब मैं बच्चा था
जब तुम गोद में ले कर
सुनाती थी लोरी
माँगती थी चंदा मामा से
दूध भरी कटोरी
और पिलाती रही -
अक्षय-कोष से अमृत।
कई दशक हो गए
गुजरे उस समय को।
आज मैं बड़ा हो गया हूँ
तुम हो गयी बूढ़ी और अक्षम
बोलने में, चलने में, खाने में,
और रोटी पकाने में भी।
तब निभाता हूँ
कई भूमिका एक साथ -
बन जाता मैं बेटी
जब जलती हैं मुझसे
आड़ी-तिरछी रोटियाँ।
बन जाता पुनः नन्हा बेटा
जब खोजता हूँ
चारपाई के नीचे से
तेरी भूली हुई चप्पल।
जब तुम्हारे हिलते हाथों को
देता हूँ सहारा
तब छलक पड़ता
तेरे आँख से सागर
रख देती हो कंधे पर हाथ
बचपन की एक सहेली सी।
अब,
जबकि तुम नहीं बुलाती
चंदा मामा
तुम्हें उठाकर गोद में
ले जाते वक्त यहाँ से वहाँ
अब मैं निभाता हूँ
एक पिता की भूमिका
और तुम चाहती हो
मुझमे कुछ और भी !
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- केशव मोहन पाण्डेय
मो०- 09015037692
A EXCELLENT POEM ON MOTHER
ReplyDeleteheart touching poem
ReplyDeleteVERY NICE VERY HIGH LEVEL EMOTIONS IN THIS HEART TOUCHING LINES OF A RESPONSIBLE CHILD OF A GREAT MOTHER..................... FE-NOMINAL FABULOUS.
ReplyDeletesir apne kya likha hai
ReplyDeletethis poem is the best one , in this poem there is emotions heart touching poem, sir i like it ............... sir my suggestions that please publish in magazines to everybody known that this poem is full of heat touching and this good for mother.
ReplyDeleteregards - abhishek kapila