ई दुनिया
दँवरी ह
उमकल दरिआव के
फेंटा लेत
भँवरी ह।
ई दुनिया
मथेले विचार से
देखाव के शिक्षा से
बनाव के
संस्कार से।
ई दुनिया में
जीवन मेह ह
कर्तव्य के बैल बनिके
रौंदे के बा
मन के भावना के,
अनाज भले भुलावा के निकले
तब का
मिलिए जाला
लिप्सा के पुआल
जीनगी में
बिछवाना के।
त कबो
बहकल मनवा के बैला
तुरा दे पगहा
त चिहुँकी मत ,
कहाँ जाई
दँवरी में नधाइल
बैल ?
जीवन
बनल रहे
सहज आ सरल
खाली धोअत रहीं
मन के मैल।
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- केशव मोहन पाण्डेय
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