बातें बनाना सीखने लगा हूँ
अब मैं भी कविता लिखने लगा हूँ
अब तो रोज
कवि सम्मेलनों में भी जाता हूँ
भले गर्दभ स्वर में ही सही
मैं अतुकांत कविता भी गाता हूँ,
इतना ही नहीं
बात कहता हूँ सौ फीसदी सही
भले सपने में ही -
चांद, मंगल, शुक्र, बृहस्पति के दरबार में भी
अब रोज का आना जाना है
कवि धर्म भी तो निभाना है,
अब तो सूरज के घर हो रहे
कवि सम्मेलन में जाना है
इधर उधर से मार कर जो कविता जोड़ा हूँ
उसे शीतल राग में सुनाकर
वहाँ भी बर्फ जमाना है
मेरी इस पक्ति-ग्रहण वृत्ति से
मेरा जीवन वृत्त भी इतना बड़ा हो गया है
कि विशालकाय पेड़ भी
हाथ जोड़कर खड़ा हो गया है
कहता है -
इसे प्रकाशित मत करवाना
कागज कम पड़ जाएंगे
आपका बायोडाटा छापने के लिए
धरती के सारे पेड़ कट जाएंगे
आप तो दयालु हैं
दिलदार हैं
ब्रह्मांड के कवि हैं।
मैं अचरज में पड़ गया
ऐसी मेरी छवि है!!
मंद मंद मुस्काया
वापस धरती पर आ गया
मुझे तो यही गर्व था
कि पूरे ब्रह्मांड में छा गया
अब ब्रह्मांड कवि
अर्थात यूनिवर्सल पोएट का
तमगा लेकर डोला करता हूँ
दूसरा कोई तो कहता नहीं
अपने ही मुँह से कहता हूँ।
कि अब तो सब जगह सेट हूँ
मैं यूनिवर्सल पोएट हूँ।
... केशव ...
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