अब हम सभी अपना कैलेण्डर बदल लेंगे। आज से नव-वर्ष की शुरुआत हो गई। नवीनता का स्वागत तो करना ही होगा। नवीनता का स्वागत तो अपनी संस्कृति, अपने परंपरा के अनुसार करना ही पड़ेगा। भारतीय संस्कृति एक जनवरी को नव-वर्ष नहीं मनाती, तो त्याग ही कहाँ करती है? भारत की धरती पर ही ईसाई, हिज़री, शक् आदि नव-वर्षों का समन्वय देखा जा सकता है। यह समन्वय की विशेषता, सभ्यता की विशेषता, मानस की विशेषता और माटी की विशेषता है। माटी की ही विशेषता है कि पेट में कुछ नहीं है, हलक सूख हुआ है, अधर पर कालिमा छा गई है, आँखों की ज्योति मर गई है, मगर पास-पड़ोस में हो रहे पर्व-त्योहार, यज्ञ-अनुष्ठान में हम गा उठते हैं। संगीत पर मन झूम उठता है। अवसर और वातावरण को हम स्वीकार लेते हैं। चाहे चैत्र का चिड़चिड़ा और वियोगी मौसम हो, चाहे जनवरी की ठिठुरी-ठिठुरी काया वाली सुबह। तन्वंगी और कौमार्ययुक्त बाला जैसी प्रकृति का सुप्त-सौन्दर्य। पर्व-उत्सव तो हम मनाते ही है। नव वर्ष का उत्सव तो नई ऊर्जा-नई संवेदना, नई सोच का संवाहक है। मानव-मन इससे कैसे दूर रहे?
पिछले कुछ सालों में हमारी गति कुछ तेज हुई है। हम कम समय में दूर तक पहुँचने में सिद्धहस्त हो गए है। मन की आकांक्षाएँ कम प्रयास में ही पूर्ण हो जा रही है। सबकी बुद्धि तीक्ष्ण होती जा रही है। तर्क-शक्ति से नई दिशाएँ तैयार हो रही हैं। नई संभावनाएँ विकसित हो रही हैं। नए रास्ते दिखाई दे रहे हैं। मनुष्य आगे बढ़ते जा रहा है। तेज, तेज और तेज की होड़ लगी है। मनुष्य की इस गतिशीलता से समय थक जा रहा है। मानव आगे निकल जा रहा है, समय पीछे ही रह जा रहा है। समय हार मान ले रहा है। समय के साथ के इस आँख-मिचैली में नव-वर्ष का उत्सव अपनी विविधता के कारण भी प्रिय होता है और अपने रंग-रूप के कारण भी। नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है। नव- वर्ष मनाने का इतिहास अति-प्राचीन है। इस नव वर्ष का उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी। रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 इस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था । हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक पाँच सितम्बर से पाँच अक्टूबर के बीच आता है। हिन्दुओं का नया साल चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन यानि गुदी पर हर साल चीनी कैलेंडर के अनुसार प्रथम मास का प्रथम चन्द्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
पृथ्वी के सभी जीवों में मनुष्य एक श्रेष्ठ प्राणी है। सबसे श्रेष्ठ प्राणी है। श्रेष्ठ प्राणी होकर भी मनुष्य है बड़ा जीवट। वह जीवन का सुन्दर-से-सुन्दर रूप देखता है। भावनाओं में जीने के साथ ही वह तर्क-शक्ति पर विश्वास करता है। ‘रिनैसा-युग’ प्रमाण है इसका। तब से आज तक की गति के साथ प्रकृति का रूप बदल दिया है मानव ने। अब अपनी तार्किकता से मानव ने सिद्ध कर दिया है कि सूर्य कभी डूबता नहीं है। पृथ्वी गोल है। प्रिया का मुख चाँद जैसा कैसे? वहाँ तो धूल, चट्टाने और पहाड़ है। मनुष्य पृथ्वी के निर्माण में सारे रसायनिक और प्राकृतिक क्रियाओं को समझ रहा है। वहाँ की वास्तविकता और भौतिक-क्रिया-कलाप भी मनुष्य समझ रहा है। प्राण-वायु की परख हुई है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिल नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग़आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नया साल विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह 19 मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है जो अक्टूबर या नवंबर में आती है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।
इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है। इस्लामी कैलेंडर एक पूर्णतया चन्द्र आधारित कैलेंडर है जिसके कारण इसके बारह मासों का चक्र 33 वर्षों में सौर कैलेंडर को एक बार घूम लेता है। इसके कारण नव वर्ष प्रचलित ग्रेगरी कैलेंडर में अलग अलग महीनों में पड़ता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता हैं, इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होती है। कहते है शालिवाहन नामक एक कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं का पराभव किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘गुड़ी पड़वा‘ के रूप में मनाया जाता है।
उत्तरोतर विकास करने वाला मनुष्य निरंतर नूतनता का वरण करता रहे। अगर इस तरह के विचार मन में बस गए तो प्रतिदिन की सुबह एक नवीन संदेश के साथ आयेगी। चिडि़यों के कलरव का स्वर भी एक नए लय में होगा। हवा की ताजगी मन को गुदगुदाएगी तथा भगवान भुवन भास्कर प्रतिदिन अपनी मखमली धूप में सबको नहलाकर नवीन आशाओं के साथ जीवन में अग्रसर होने के लिए प्रेरित करेंगे। नूतनता का दीवाना कौन नहीं होता? सबको नया माहौल, नए लोग, नया वस्त्र, नई उम्र, नया स्वर, नई ताल अपनी ओर आकर्षित करते हैं। हिंदी के महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ भी नवीनता की प्रार्थना करते हुए माँ सरस्वती से कहते हैं, -
पिछले कुछ सालों में हमारी गति कुछ तेज हुई है। हम कम समय में दूर तक पहुँचने में सिद्धहस्त हो गए है। मन की आकांक्षाएँ कम प्रयास में ही पूर्ण हो जा रही है। सबकी बुद्धि तीक्ष्ण होती जा रही है। तर्क-शक्ति से नई दिशाएँ तैयार हो रही हैं। नई संभावनाएँ विकसित हो रही हैं। नए रास्ते दिखाई दे रहे हैं। मनुष्य आगे बढ़ते जा रहा है। तेज, तेज और तेज की होड़ लगी है। मनुष्य की इस गतिशीलता से समय थक जा रहा है। मानव आगे निकल जा रहा है, समय पीछे ही रह जा रहा है। समय हार मान ले रहा है। समय के साथ के इस आँख-मिचैली में नव-वर्ष का उत्सव अपनी विविधता के कारण भी प्रिय होता है और अपने रंग-रूप के कारण भी। नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है। नव- वर्ष मनाने का इतिहास अति-प्राचीन है। इस नव वर्ष का उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी। रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 इस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था । हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक पाँच सितम्बर से पाँच अक्टूबर के बीच आता है। हिन्दुओं का नया साल चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन यानि गुदी पर हर साल चीनी कैलेंडर के अनुसार प्रथम मास का प्रथम चन्द्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
पृथ्वी के सभी जीवों में मनुष्य एक श्रेष्ठ प्राणी है। सबसे श्रेष्ठ प्राणी है। श्रेष्ठ प्राणी होकर भी मनुष्य है बड़ा जीवट। वह जीवन का सुन्दर-से-सुन्दर रूप देखता है। भावनाओं में जीने के साथ ही वह तर्क-शक्ति पर विश्वास करता है। ‘रिनैसा-युग’ प्रमाण है इसका। तब से आज तक की गति के साथ प्रकृति का रूप बदल दिया है मानव ने। अब अपनी तार्किकता से मानव ने सिद्ध कर दिया है कि सूर्य कभी डूबता नहीं है। पृथ्वी गोल है। प्रिया का मुख चाँद जैसा कैसे? वहाँ तो धूल, चट्टाने और पहाड़ है। मनुष्य पृथ्वी के निर्माण में सारे रसायनिक और प्राकृतिक क्रियाओं को समझ रहा है। वहाँ की वास्तविकता और भौतिक-क्रिया-कलाप भी मनुष्य समझ रहा है। प्राण-वायु की परख हुई है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिल नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग़आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नया साल विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह 19 मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है जो अक्टूबर या नवंबर में आती है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।
इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है। इस्लामी कैलेंडर एक पूर्णतया चन्द्र आधारित कैलेंडर है जिसके कारण इसके बारह मासों का चक्र 33 वर्षों में सौर कैलेंडर को एक बार घूम लेता है। इसके कारण नव वर्ष प्रचलित ग्रेगरी कैलेंडर में अलग अलग महीनों में पड़ता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता हैं, इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होती है। कहते है शालिवाहन नामक एक कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं का पराभव किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘गुड़ी पड़वा‘ के रूप में मनाया जाता है।
उत्तरोतर विकास करने वाला मनुष्य निरंतर नूतनता का वरण करता रहे। अगर इस तरह के विचार मन में बस गए तो प्रतिदिन की सुबह एक नवीन संदेश के साथ आयेगी। चिडि़यों के कलरव का स्वर भी एक नए लय में होगा। हवा की ताजगी मन को गुदगुदाएगी तथा भगवान भुवन भास्कर प्रतिदिन अपनी मखमली धूप में सबको नहलाकर नवीन आशाओं के साथ जीवन में अग्रसर होने के लिए प्रेरित करेंगे। नूतनता का दीवाना कौन नहीं होता? सबको नया माहौल, नए लोग, नया वस्त्र, नई उम्र, नया स्वर, नई ताल अपनी ओर आकर्षित करते हैं। हिंदी के महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ भी नवीनता की प्रार्थना करते हुए माँ सरस्वती से कहते हैं, -
नव-गति, नव-लय, ताल-छनद नव,
नवल-कंठ, नव जलद-मंद्र-रव,
नव-नभ के नव-विहग-वृंद को
नव पर नव स्वर दे।
नवीनता चाहे किसी भी अवसर का हो, मन में उल्लास भरने वाले उस नव पल के लिए मेरा मन भी असीम शुभकामना व्यक्त कर रहा है।
----------------- - केशव मोहन पाण्डेय
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 26 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!