हार मत मानना
रे मन!
कदम बढ़ाते जाना
आँखें
लक्ष्य पर अड़ाते जाना।
क्या हुआ जो गिर गए?
ऐसे ही तो
अनगिनत साधु, संत
और असंख्य पीर गए।
जो चलोगे नहीं
तो गिरोगे कहाँ
और जो चलोगे नहीं
सिर्फ डरोगे गिरने से
तो लक्ष्य समर्पण कैसे करेगा
स्वयं को
तुम्हारे चरणों में?
अगर सोचते हो
लक्ष्य को पाना है
तो हर हाल में
आगे
और आगे
और आगे
बढ़ते जाना है।
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© केशव मोहन पाण्डेय
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 26 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर
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