उत्तर-प्रदेश के गोरखपुर का बेतिया हाता आज भी अपनी समृद्धि, विद्वता और रौनक के कारण अपनी अलग पहचान बनाता है। उन्हीं गलियों में अपना बचपन व्यतीत की हुई संगीतिका आडवानी आज अमेरिका के लांस एंजलिस में रहती हैं। वहाँ वे लगभग पचीस वर्षों से हैं। वहाँ उनका भरा-पूरा परिवार है। वे एक संगीत-स्कूल चलाती हैं, एक अस्पताल में नर्सिंग करती और मौका मिलते ही निरंतर शो करती रहने की व्यस्तता के बीच भी अपने भारतीयों और विशेषकर भोजपुरी-भाषियों के लिए भी भोजपुरी संगीत का सुगंध फैलाती रहती हैं। पिछले दिनों जब उनसे मुलाकात हुई तो मैं उनके अनुभवों को जानने के लिए बेचैन हो गया। प्रस्तुत है संगीतिका आडवानी से किए गए साक्षात्कार का कुछ अंश -
प्रश्न - संगीतिका जी, सबसे पहले आप अपने विषय में विस्तार से बताइए।
उत्तर - मेरा जन्म उत्तर-प्रदेश के गोरखपुर के बेतिया हाता में हुआ। मेरी मम्मी स्वयं भी एक प्रतिष्ठित गायिका है, अतः संगीत मेरे खून में ही था। पाँच साल की उम्र से मैं संगीत की साधना में लग गई। बचपन से ही संगीत के अतिरिक्त और कुछ मुझे पता ही नहीं था कि इसके अलावा और भी कुछ करना है। तो इस प्रकार मेरी मम्मी और परिवार के नाते मुझे संगीत से लगाव हो गया। मैं तेरह साल की उम्र तक वहाँ रही। अनेक मंचों के साथ-साथ आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी मुझे गाने का मौका मिला। तेरह साल की उम्र में मुझे भारतखंडे संगीत विद्यालय में एडमिशन मिल गया। वहाँ मैं दो वर्षों तक रही। 15 साल की उम्र में मेरा यू.एस.का विज़ा मिल गया। वहाँ जाकर मैं निरंतर संगीत साधना करती रही। वहाँ पर लक्ष्मीशंकर जी से दो साल संगीत सीखा। उसके बाद से मैं स्वयं भी सिखाती गई। फिर करीब पाँच साल बाद मुझे मास्टर की डिग्री मिली। उसके बाद मेरी स्वयं की यात्रा प्रारंभ हुई जो कि ले देकर संगीत, संगीत और सिर्फ संगीत। आज भी कैलिफोर्निया में मेरा खुद का सुर संगीत म्यूजि़क एण्ड आर्ट स्कूल है। अब तो बस उसी को लेकर काम कर रही हूँ।
प्रश्न - जैसा कि आपने बताया कि आप एक शिक्षक, गीतकार, संगीत-निर्देशक और गायिका आदि की भूमिका निर्वाह करती हैं। इतना कुछ एक साथ कैसे संभव हो पाता है?
उत्तर - इतना कुछ संभव इस नाते हो पाता है क्योंकि स्वयं संगीत ही एनर्जी देता है। मुझे गाना बहुत पसंद है। एक दिन गाना न गाऊँ तो बीमार पड़ जाऊँगी। दूसरा है कि शो करना। वह भी म्यूजि़क से ही संबंधित है, तो वह भी बाधा नहीं है। सर, एक औरत कभी कमजोर नहीं होती। हम लोग मल्टी टाॅस्क करने की क्षमता रखते हैं और मैं भी करती हूँ। तो अभी आपने जितना कुछ बताया, उसमें सिर्फ और सिर्फ संगीत से ही मुझे ऊर्जा मिलती है। और निश्चिततः मैं इतना सबकुछ इसलिए भी कर पाती हूँ कि मेरे पति का भरपूर सहयोग मिलता है।
प्रष्न - अपना देश, अपनी मिट्टी और अपने लोगों को आप कब याद करती है?
उत्तर - हर क्षण। हर क्षण याद करती हूँ। जैसे कि मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण दूँगी कि अगर आप सैंट वजे़ में मेरे घर आये तो मेरे मुहल्ले में प्रवेश करते ही आपको पता चल जाएगा कि मेरा घर कौन है। क्योंकि वहाँ अपने देशी मसाले की मँहक आयेगी। मैं यहाँ जब भी आती हूँ तो मसाला, अचार आदि पहले पैक किया जाता है। मैं अपने बच्चों से अपनी भाषा में बात करती हूँ। 'भोजपुरी परिवार' के कारण हम जब भी मिलते हैं, आपस में भोजपुरी में बातें करते हैं। लगता ही नहीं कि हम लांस एंजलिस और कैलिफोर्निया में है।
प्रश्न - आपके लिए भारतीय संगीत कितना मायने रखता है? अमेरिका में रहकर भारतीय संगीत को आप कितना इंज्वाॅय करती हैं?
उत्तर - आई उड से, मे बी मोर। क्योंकि मुझे लगता है कि भले ही यहाँ पर क्वांटिटी बहुत है, वहाँ पर क्वालिटी है। भारतीय संगीत और अपनी भोजपुरी के विषय में सोचने की क्या बात है, वह तो साँसों में बसा है।
प्रश्न - भोजपुरी आपके जीवन में कहीं-न-कहीं हैं। भोजपुरी भाषा और संगीत को आप कैसे देखती हैं?
उत्तर - भोजपुरी भाशा बहुत समृद्ध और पुरानी भाषा है। भोजपुरी को लेकर मेरी तथा भोजपुरी परिवार की निरंतर यह कोशिश रहती है कि वहाँ पर हम अपने बच्चों को भोजपुरी सिखाते रहते हैं। हम जब मिलते हैं तो आपस में भोजपुरी ही बोलते हैं। भोजपुरी के एक-एक गाने ऐसे हैं कि अगर हमारे बच्चे समझ लें तो हम अपने लक्ष्य में सफल हो जाएँगे। हम इस भाषा के विकास के लिए वास्तव में प्रयास करते हैं, केवल बैनर-पोस्टर और अखबारों तक ही सीमित नहीं रहते। (भोजपुरी संगीत के प्रति अपनी निष्ठा को व्यक्त करते हुए एक गीत गाती हैं) -
मोरा हीयरा हेरा गइले कचरे में।
कहू जोहे काशी में, केहू काबे में,
केहू जोहे पंडित के पतरे में।
मोरा हीयरा हेरा गइले कचरे में।।
प्रश्न - कहा जाता है कि माँ-बाप का प्रभाव संतानों पर पड़ता है। आप पर आपके माता-पिता का क्या प्रभाव है? आगे की पीढ़ी को आप क्या देना चाहती है?
उत्तर - आज तक जो कुछ भी मैं हूँ, जो आप मुझे देख रहे हैं, पच्चीस साल हो गया अमेरिका में रहते हुए, मगर मेरी जो भाषा सुन रहे हैं, जो मेरी सोच है या जो मेरा संगीत है, यह पूरा-का-पूरा मेरे माता-पिता की देन है। मेरे मम्मी-पापा ने जो कुछ मुझे दिया, मैं वह सारा कुछ अपने बच्चों में देना चाहती हूँ।
प्रश्न - लोग कहते हैं कि आजकल विशेषकर गायिकाओं के लिए गायिकी की प्रतिभा के साथ-साथ शारीरिक आकर्षण भी बहुत मायने रखता है। आप इस बात को कितना मानती हैं?
उत्तर - (एक लंबी साँस लेकर) मैं इस बात से पूर्णतः सहमत नहीं हूँ। मगर ईमानदारी से कहा जाय तो अगर आप शो कर रहे हैं तो आकर्षक चेहरा होना जरूरी है। अगर लोग आपको देखने-सुनने आ रहे हैं तो प्रतिभा के साथ आकर्षक चेहरा भी अवश्य चाहिए। आज की दुनिया विज्ञापन की दुनिया है और आप अच्छा गायिका हैं तथा साथ ही देखने में भी अच्छी हैं तो सफलता की अधिक संभावना है। मैं आपकी बातों से फिफ्टी-फिफ्टी सहमत हूँ क्योंकि अपनी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में भी बहुत सी गायिकाएँ रही हैं जो चेहरे से बहुत आकर्षक न होने पर भी अपनी प्रतिभा के दम पर आज भी कायम हैं और पहले भी रही हैं।
प्रश्न - संगीत को साधना कहा जाता है। इसे साधने वालों की एक अलग परंपरा है। सबका कोई-न-कोई आदर्श होता है। आप किसे अपना आदर्श मानती हैं?
उत्तर - मैं आदर्श तो तीन-चार लोगों को मानती हूँ परन्तु उनमें सबसे पहला नाम मेरी माँ का है। उन्हीं से मैंने सीखा कि किस अनुशासन में रहकर, किस प्रकार से समूचित समय निकाल कर संगीत की साधना की जाय। मेरी माँ मेरे लिए सबसे पहले आदर्श इसलिए भी हैं कि उन्हीं से भोजपुरी संगीत के प्रति मुझमें लगाव उत्पन्न हुआ। फिर मेरे लिए भीमसेन जोशी जी, हरिहरन जी, अनूप जी आदि से मैं बहुत प्रभावित रहती हूँ और उन्हें अपना आदर्श मानती हूँ।
प्रश्न- क्या आप भी मानती हैं कि आज की गायिकी एक व्यावसायिक तमाशा बनकर रह गई है?
उत्तर - जी हाँ। व्यावसायिक तमाशा इस नाते बनकर रह गया है क्योंकि आज के संगीत में यह सोचा जा रहा है कि क्या चले। मैं यह भी मानती हूँ कि संगीत में पहले से अधिक सुधार आया है, मगर व्यावसायिकता बहुत अधिक है। सर, वास्तविकता यह है कि जिस संगीत में क्वालिटी नहीं रहता, उस संगीत को एक साल बाद कोई नहीं पूछता है। उसमें स्थिरता नहीं रहती।
प्रश्न - संगीत को लेकर आपने आगे कुछ विचार बनाया है? अगर हाँ तो मेरे पाठको को बताइए।
उत्तर - हाँ, संगीत को लेकर हम एक बहुत बड़ा विचार बना रहे हैं। हम अपने सोलहों संस्कारों को लेकर एक समृद्ध एलबम बनाने वाले हैं। कमर्शियल तो वह होगा, मगर अपने शुद्ध पारंपरिक भोजपुरी गीतों को लेकर के बनाया जाएगा।
प्रश्न - हमारे पाठकों के लिए कोई सन्देश ?
उत्तर - जी, हमें अपनी मिट्टी और अपनी भोजपुरी भाषा को लेकर हमेशा गर्व अनुभव करना चाहिए। चाहे कथा-कहानी हो या कहावत, चाहे संस्कार हो या गीत या व्रत-त्योहार, जो हमारे पास है, वह किसी के पास नहीं है।
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- केशव मोहन पाण्डेय
(भोजपरी-पंचायत के फरवरी 2015 के अंक में प्रकाशित)
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