बात सन 2003 के 12 जनवरी की है। तत्कालीन विधानसभा क्षेत्र सेवरही के पूर्व विधायक पं. नन्दकिशोर मिश्र की संस्था जीवन ज्योति जागृति मिशन के द्वारा तरया लच्छीराम में विवेकानन्द जयंती का कार्यक्रम आयोजित था। मुझे वहाँ पहुँचने का सौभाग्य संस्कार भारती के भाई श्री शिवाजी गिरी के माध्यम से मिला था। उन्होंने मेरे एक नाटक की प्रस्तुति देखी थी। विवेकानन्द जयंती समारोह के मंच पर उस नाटक की प्रस्तुति का न्योता दिया था उन्होंने। मेरे लिए तो जैसे मुँह माँगी मुराद मिल गई थी। अपने छात्र कलाकारों को लेकर पहुँच गया था। पता चला कि उस कार्यक्रम में प्रख्यात संगीतकार श्री रवींद्र जैन आ रहे हैं। मुझे तथा मेरे छात्रों को उनके समक्ष कार्यक्रम प्रस्तुत करने का सुअवसर मिला। उसी कार्यक्रम के दौरान रवींद्र जैन ने एक आसु चौपाई गाया था, -
गन्ना, गंडक और गरीबी। इन सबसे नाता है करीबी।।
आज जब अपने सेवरही के गन्ना समाचारों को पढ़ता हूँ तो वह चौपाई मेरे कानों में गुँजने लगती है। वाकई सेवरही चीनी मिल अपने पेराई क्षमता और उत्पाद शक्ति के कारण उत्तर-प्रदेश ही नहीं, पूरे देश और एशिया में अपना स्थान रखता है। सेवरही परिक्षेत्र और उससे सटे बिहार प्रांत में लगभग अस्सी प्रतिशत गन्ने की खेती होती है। गरीबी भी इसका कारण है, गंडक भी। गंडक ने पारिस्थिकी पैदा की और गन्ने की ऊपज में अपना योगदान दिया। गरीब किसानों का परिश्रम तो प्रतिवर्ष फूलता है मगर फलता नहीं है। प्रतिवर्ष चीनी मील प्रारंभ होते ही क्षेत्र में गन्ना माफियाओं की सक्रियता बढ़ जाती है। वे किसानों से औने-पौने दाम पर गन्ना खरीद कर क्रेशर तथा चालू चीनी मिलों पर ऊँचे दाम पर सप्लाई करने का खेल शुरू कर देते हैं। असहाय गन्ना किसान पेट की आग मिटाने, तन ढकने, खेती करने और बेटी की शादी-विवाह करने की विवशता में गन्ना माफियाओं के हाथ लुटने को विवश हो ही जाते हैं।
इंटरनेट और ई-पेपर की सुविधा का लाभ उठाते हुए क्षेत्रीय समाचार पत्रों को मैं लगभग प्रतिदिन पढ़ता हूँ। अभी हाल ही में पढ़ने को मिला कि बीते पेराई सत्र में 20 रुपये प्रति क्विंटल डिफर भुगतान पाने के लिए जद्दो-जहद करने वाले किसान रोश में थे कि चालू सत्र में 40 रुपये डिफर भुगतान की नीति ने उन्हें हतोत्साहित करके रख दिया है। भुगतान में होने वाले विलंब के चलते किसान माफियाओं के चंगुल में सहज चले जा रहे हैं। गन्ना किसान फसल को नकदी मानते रहे हैं, अब यह घाटे का सौदा साबित हो रहा है। क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों ने कहना प्रारंभ किया है कि सरकार तथा चीनी मीलों के ढुलमुल नीति के कारण गन्ना फसल की बोआई एक चैथाई रह गई है। गन्ना की खेती करने वाले कंगाल हो गए हैं। गन्ना किसानों के सामने रवि फसल की बोआई की समस्या खड़ी है। ऐसे में किसान 125 रुपये प्रति क्विंटल की दर से माफियाओं के हाथ गन्ना बेचने को मजबूर हैं।
आप फेसबुक पर अपने मित्र तथा सेवरही के युवा व्यापार मंडल के अध्यक्ष पप्पू जायसवाल का वाल पढ़ा। गन्ना, चीनी मील और सेवरही के आपसी नाते को याद कर काफी कोफ्त हुआ। गन्ना से गरीबों का हाल इस जाड़े में जो होता है, वह तो होता ही है, सेवरही के व्यावसायियों और बाजार करने आने वाले ग्रामीणों की दशा भी कब नहीं बिगड़ती। उन्होंने लिखा था कि कब सुधरेगा नगर पंचायत सेवरही के जाम की समस्या। बात भी सही है, जबसे सेवरही गन्ना फैक्ट्री चालू हो जाता है, तब से नगर में जाम होना शुरू हो जाता है। इस जाम से नगर में यातायात पूर्णतः प्रभावित तो होता ही है, इससे आम जनता, किसान, ग्रामीण, व्यापारी, वाहन, स्कूल बस आदि सब ठप हो जाते है। इस नगर के समस्या को दूर करने के लिए कोई भी ठोस तरीका नहीं अपनाया जाता है। इसी समस्या के कारण ही पुरानी पुलिस चैकी चैराहे पर बैजनाथ मद्धेशिया के बारह वर्ष पुत्र का एक्सीडेंट से घर की सामने ही दर्दनाक मृत्यु हो गई। उस घटना के बाद युवा व्यापार मंडल के अध्यक्ष पप्पू जायसवाल, महामंत्री आशीष वर्मा के नेतृत्व में एक आन्दोलन किया गया और मांग रखी गई की पीडि़त परिवार को पाँच लाख रुपये देने के साथ ही सड़क जाम से छुटकारा भी दिलवाने का उपाय किया जाय। माननीय एस.डी.एम. पंकज वर्मा और सीओ दिनेश सिंह ने दो लाख की देने की अश्वासन दिया और तत्काल जाम से मुक्त कराने के लिए अश्वासन दिया लेकिन उसके बाद भी कई एक्सीडेंट हो चुका। इन्हीं घटनाओं में तीरथ राम पेट्रोल पंप के सामने गन्ना लदी ट्रक एक टेम्पो पर गीर गयी जिसमें चार लोग गंभीर रूप से घायल तथा एक बच्चे और उसके माँ की भी मृत्यु हो गई थी। उस घटना के बाद फैक्ट्री के प्रबंधक के पास तत्कालीन एसओ जसराज यादव ने पुलिस को लेकर फैक्ट्री के अन्दर प्रबन्धक को बुलाने को कहे तो फैक्ट्री के कर्मचारी मील बन्द कर हड़ताल पर चले गए। इधर नगर में एक बार फिर जाम शुरू हो गया है। समस्याओं को न्योता देते हुए तथा नगर को बदहवास करते हुए इस बार पुनः सेवरही चीनी मिल ने गन्ने की पेराई प्रारंभ कर दी है। डीएम ने मिल के डोंगे में गन्ना डालकर इसकी शुरुआत की। डीएम लोकेश एम और सेवरही चीनी मिल के अधिशासी निदेशक शेर सिंह चैहान ने वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच हवन- पूजन किया। इसके बाद मिल के डोंगे में गन्ना डाला। डीएम ने मिल के पैन, कांटे व अन्य स्थानों का निरीक्षण किया। इस दरमियान डीसीओ हरपाल सिंह भी मौजूद थे। मिल प्रबंधन की ओर से किसानों में मिठाई वितरित की गई। इस दौरान कुछ किसानों ने मिठाई लेने से इंकार कर दिया। उनका आरोप था कि मिल किसानों के मेहनत से उपजाए गए गन्ने की बदौलत चलती है। किसानों को यहाँ बुलाकर मिल प्रबंधन को उनकी समस्याएं सुननी चाहिए थीं। पूर्व के पेराई सत्रों में यह व्यवस्था रही है। प्रगतिशील किसानों ने मिल प्रबंधन पर किसानों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया।
बात फिर से वही आकर झकझोरने लगती है कि आज ग्यारह वर्ष बाद भी गन्ना के कारण किसानों का वजूद तो है, परन्तु कभी गंडक की बाढ़ और कटान परेशान करती है तो कभी गन्ना माफियाओं का वर्चस्व ले डूबता है और अगर कभी कुछ बचता है तो किसानों की समस्याएँ कम नहीं होती। सेवरही की दशा नहीं सुधरती। वादे होते हैं, नेता शोर मचाते हैं, कुछ चिंता भी करते हैं, मगर प्रशासन अपने में मस्त है, गन्ना का पोशाक गरीब किसान आज भी पस्त है। जिन्दगी की गाड़ी रेत पर तो दौड़ पाती ही नहीं, फिर दो कदम चलकर फँस जाती है। गरीबी का बोलबाला पहले सा ही रहता है। सेवरही की सँकरी सड़कें रेंग भी नहीं पाती हैं। गन्ना लदे ट्रैक्टर, बैलगाड़ी और ट्रकों की दुर्घटनाएँ कई मासूमों की जानें लेती रहती हैं। प्रशासन के हजार वादे झूठे सिद्ध होते रहते हैं परन्तु जीवट सेवरही-वासियों की जिन्दगी बदस्तूर चलती रहती है और मेरे कानों में रवींद्र जैन की आसु-चौपाई गुँजती रहती है। (विशेष आभार: पप्पू जायसवाल, सेवरही)
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