Dec 28, 2014

कैसी सर्दी आई है?


     बहुत ठण्ड है। अँगुलियाँ जकड़ी जा रही है। कान-नाक गलते से लग रहे हैं। बिस्तर में दुबके रहने की इच्छा ही बलवती है। छुट्टियाँ मनाने का मन कर रहा है। हम तो बस ऐसे ही मन के करने और कल्पनाओं में जाड़े को दूर करने की सार्थकता पर विचार करते हुए अपनी दिनचर्या में मग्न हो जाते हैं। आज कवीश्वर पद्माकर की पक्तियाँ बहुत याद आ रही है। जाड़े के लिए पद्माकर का मसाला आप भी तो देखिये। उन्होंने अपने एक ही छन्द में तत्कालीन दरबारों की रूपरेखा के साथ ही सिसिर (शिशिर) अर्थात् जाड़े का अंकन कर दिया है- 
        गुलगुली गिल में गलीचा हैं, गुनीजन हैं, चाँदनी है, चिक है चिरागन की माला हैं।
        कहैं पद्माकर त्यौं गजक गिजा है सजी, सेज हैं सुराही हैं सुरा हैं और प्याला हैं।
       सिसिर के पाला को व्यापत न कसाला तिन्हें, जिनके अधीन ऐते उदित मसाला हैं।
       तान तुक ताला है, विनोद के रसाला है, सुबाला हैं, दुसाला हैं, विसाला चित्रसाला हैं।।
कवि ने सजीव मूर्त विधान करने वाली कल्पना के माध्यम से शौर्य, श्रृंगार, प्रेम, भक्ति, राजदरबार की सम्पन्न गतिविधियों, मेलो-उत्सवों, युद्धों और प्रकृति-सौंदर्य का मार्मिक चित्रण किया है। आज न वैसा राजदरबार है, न वैसे कवि हैं, परन्तु शिशिर ऋतु का चरम आज भी है। मैं भी हूँ। तह-दर-तह वस्त्र से आवृत्त। कई हज़ारों और भी है। ‘सीस पगा न झगा तन में’ वाले भी।
मैं तो बस अपनी बात कहने के लिए पद्माकर और उनके छन्दों का जिक्र कर दिया, परन्तु वास्तविकता तो यह है कि किसी भी कामकाजी या मेरे जैसे साधारण व्यक्ति के लिए जाड़े का दुख अनुभव करना नहीं संभव है। हम भेगते तो हैं और घर जाकर बस रूम हिटर की शरण में तन को तनिक तपिश देने का प्रयास करते हैं। आज न अंगिठी है, न लकडि़याँ हैं और न बाबुजी की धुईं।
मेरे बाबुजी के लिए जाड़े की तैयारी और मौसम कुछ अलग होता था। वे पहले तो अपने ताकत भर, फिर थक जाने पर मजदूर लगाकर बाँस के कोठ से उसका सूखा हुआ जड़ (खुत्था) निकलवाकर दालान में ढेर लगवा लेते थे। दालान में पूरे जाड़ा अलाव जलता रहता था। अलाव की निरंतरता के कारण उसे हम सभी धुईं कहते थे। जब कोई चलते राह ठंड से सिकुड़कर आकर बैठ जाता और गरम होकर ताजा हो जाता तो बाबुजी को उसमे सुकून मिलता था। जब कोई काँपता हुआ बिना मेरे दालान में आये ही जाने लगता तो बाबुजी बुलाते, - ‘अरे भाई, तनिक देंह सेंक लो। बाहर बहुत ठण्ड है।’ - धुईं के पास उस आगंतुक के बैठते ही माई चाय बनाने का उपक्रम करने लगती। आगंतुक आग और चाय से ताजा होकर जाता तो आशीष का बाग बसाते जाता।
अब न वैसा समय है, न संवेदना। संवेदना है भी तो पता नहीं सामने वाला अजनबी कौन है? कहीं आतंकवादी तो नहीं? अपहरणकर्ता तो नहीं? धूर्त-धोखेबाज या और कुछ तो नहीं। दिल्ली जैसे शहरों में रैनबसेरों पर तो रिपोर्ट पढ़ा ही जा रहा है, मैं स्वयं भी सुबह-सुबह विद्यालय जाते समय बत्ती के पास एक बुढि़या को देखता हूँ। चिथड़ों में लिपटी बुढि़या को देखकर दया आती है। दया तो आती है, मगर उस दया, अपनी संवेदना को व्यक्त करने के लिए समय कहाँ? देखता हूँ और अपने गंतव्य पर समय से पहुँचने के लिए आगे बढ़ जाता हूँ। अपनी उसी संवेदना के उद्यान में अपने पिता जी की धुईं देखता हूँ और चाहता हूँ कि उस बुढि़या के जर्जर तन को थोड़ा तपिश मिल जाए। उस तपिश को पद्माकर के पद न सही, अभिनव शुक्ल की कविता भी तो तपिश दे रही होगी। उस तपिश की सत्यता को आप भी तो अनुभव कर रहे होंगे -
धर्म टूटकर,
धर्म बना है,
लाल रक्त से,
धर्म सना है,
धर्मगुरू नें ढोंग रचाकर,
बेशर्मी बिखराई है,
कैसी सर्दी आई है।
.....................

Dec 20, 2014

नस्ल-ए-आदम का खून है आखिर

     'खून किसी का भी गिरे यहाँ, नस्ल-ए-आदम का खून है आखिर। बच्चे सरहद पार के ही सही, किसी के छाती के सुकून हैं आखिर।।' निदा फ़ाजली का यह शेर कितना सटीक और मानवतावादी है। अभी हाल में हुई पेशावर की त्रासदी से पूरी दुनिया सन्न है, दुखी भी है। भारत और भारतीयों को तो ऐसा लग  है कि यह घटना  हुई है।  तो यह कि पेशावर की उस त्रासदी के बाद भारतीय प्रधानमंत्री तो शोक व्यक्त करते ही  है, साथ ही सभी भारतीय विद्यालयों से आग्रह करते है कि मृत-शिशुओं की आत्मा की शान्ति के लिए दो मिनट का मौन धारण करे। पूरा दर्द हमें अपना लगता है। हम कभी भी नहीं चाहते कि पाकिस्तान में या दुनिया के किसी कोने में कोई बारदात हो। हम अपनी भारत माता से बेहद प्यार करे है। किसी ने बहुत ही सटीक कहा है कि जो अपनी माँ से प्यार करेगा वह दूसरों की  आदर करेगा। यह अलग बात कि लखवी की ज़मानत से पाकिस्तान ने अपनी मातृ-भक्ति पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की रही है। भारत एक ऐसा देश है जिसने वेदकाल से ही वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास रखा है। 
                                            अय निजः परोवेति, गणना लघुचेत साम्।
                                            उदार चरितानाम् तु, वसुधैव कुटुम्बकम्॥
     अर्थात् यह मेरा है और यह पराया है, ऐसा विचार संकुचित मानसिकता का परिचायक है, श्रेष्ठ एवम् उदार चरित्र वाले व्यक्ति सम्पूर्ण विश्व को ही अपना परिवार मानते हैं। भारत का समाज अत्यंत प्रारम्भिक काल से ही अपने अपने स्थान भेद, वातावरण भेद, आशा भेद, वस्त्र भेद, भोजन भेद आदि विभिन्न कारणों से बहुलवादी रहा है। यह तो लगभग वैदिक काल में भी ऐसा ही रहा है अथर्व वेद के 12वें मण्डल के प्रथम अध्याय में इस पर बड़ी विस्तृत चर्चा हुई है एक प्रश्न के उत्तर में ऋषि यह घोषणा करते हैं कि 'जनं विभ्रति बहुधा, विवाचसम्, नाना धर्माणंम् पृथ्वी यथौकसम्।सहस्र धारा द्रवीणस्यमेदूहाम, ध्रिवेन धेनुंरनप्रस्फरत्नी।।' अर्थात विभिन्न भाषा, धर्म, मत आदि जनों को परिवार के समान धारण करने वली यह हमारी मातृभूमि कामधेनु के समान धन की हजारों धारायें हमें प्रदान करें।
     आज का यह दौर बहुत ही बुरा है ऐसा लगता है कि पूरा विश्व अनाथ है, इसका कोई मां बाप ही नही है । जो चाहे हथियार के बल पर अपनी मनमानी कर ले। अपने स्तर से इस संसार को बिना कोई मुलाहिजा या विचार के भरपूर लूट रहे है । इस दौर व इस मनोवृति के बारे में तो आगे लगातार लिखना ही है कि क्या गलत है कहां गलत है, क्यो गलत है, समय समय पर इस बारे में विशलेषण करना ही है। आज विश्व आतंकवाद की समस्याओ के दुष्चक्र में फंसकर जो हत्याओं का मातम मन रहा है, यह कोई सामान्य बात नही है बल्कि यह एक ऐसा षडयंत्र भरा मकड़जाल है जिससे कोई भी देश बच नही सकेगा । 
     अब तो दुनिया के सभी मातृ-भक्तों को जगाना चाहिए। अब तो और ही स्पष्ट हो गया कि दुनिया दो समूहों में विभक्त है - एक आतंकवाद के समर्थक और दूसरे शांति के समर्थक। भाई, यह तो लाखों बार सिद्ध हो चूका है कि आसुरी प्रवृतियां चाहें जितना  भी दम लगा लें, चाहे जितनी हानि पहुँचा ले, चाहे जितने मासूमों को हलाल कर दे, अंत तो उन्हीं का होता है। मैं पेशावर की घटना के बहाने पाकिस्तान से ही कहना चाहूँगा। भाई पाकिस्तान,  अब भी जाग जाओ। कोहरा छंटने वाला है। सूरज की किरणें छिटक रहीं है। उठो। आज़ान की आवाज सुनो। यह आज़ान, यह पुकार वज़ू करने, सिजदा करने के केवल नहीं है, वह तो तुम किसी ही हाल में करते हो, हमारे यहाँ के मुसलमान भी करते हैं, यह यह आज़ान, यह पुकार खुद को जगाने  है। आतंक के खिलाफ एकजूट होने के लिए है। उन 142 शहीदों की मौत का कम-से-कम इतना तो तवज्जो दो कि खुदा के पास जाकर तुम्हें मुआफ़ करने और तुम्हारी गलतियों को भूल जाने की करें। 
     भाई, हम तो तुम्हारे जन्म से  चेते हुए है। कोई भी हाफ़िज़ चाहे लाख गला फाड़े, न आज तक हमारा कुछ बिगाड़ा है और न आगे कुछ बिगाड़ पायेगा। भाई तुम्हारा जन्म तो हमसे ही हुआ है। पैदा करने वाले हैं तुम्हारे। सलाह दे रहे हैं। बात मान लोगे तो आने वाली नश्लें चैन से रहेंगी, नहीं तो अपने पैर पर आप ही कुल्हाड़ी तो मार ही रहे हो। हम तो फ़न कुचलना भी जानते हैं, समझना भी जानते हैं और सामने वाले की औक़ात भी दिखाना जानते है। हमारे रेडियो जॉकी नावेद ने याद है न विलावल भुट्टो के मुद्दे पर किस निडरता के साथ ज्ञान दिया था? नहीं याद आ याक़ूब शेरवानी से एक दफ़ा यू ही पूछ लेना। यह तो हमारे खून में है।  हमारी है। इतना इतिहास तो पढ़े होगे। 
    भाई, दुनिया भेद और भय से आपको नहीं मानेगी। मैं अपनी दिवंगता माँ की एक बात बताता हूँ। मेरी माँ कहती थीं कि चाहे कोई कितना भी रोब दिखले मगर लोग प्यार की ही भाषा मानते है। - ' ऊहे मुँहवा पान खिआवेला ऊहे मुहँवा जूता। ' (वहीं मुँह पान खिलाता है, वहीं जूता) तो आओ, विश्व के दूसरे समूह के साथ, शांति चाहने वालों के साथ कदम बढ़ाकर विश्व में शांति-स्थापना में अपना योगदान दो। भाई, आतंकवादियों का मुँह स्वतः बंद हो जायेगा। एक बार फिर निदा फ़ाजली का यह शेर भी समझ रहा है कि - 
                                         दिलेरी का हरगिज़,हरगिज़ ये काम नहीं है। 
                                         दहशत किसी मजहब का पैगाम नहीं है। 
                                         तुम्हारी इबादत, तुम्हारा खुदा, तुम जानो --
                                       हमें पक्का यकीं है, ये कत्तई इस्लाम नहीं है। 
                                                        ---------------------

Dec 16, 2014

गन्ना, गंडक और गरीबी


     बात सन 2003 के 12 जनवरी की है। तत्कालीन विधानसभा क्षेत्र सेवरही के पूर्व विधायक पं. नन्दकिशोर मिश्र की संस्था जीवन ज्योति जागृति मिशन के द्वारा तरया लच्छीराम में विवेकानन्द जयंती का कार्यक्रम आयोजित था। मुझे वहाँ पहुँचने का सौभाग्य संस्कार भारती के भाई श्री शिवाजी गिरी के माध्यम से मिला था। उन्होंने मेरे एक नाटक की प्रस्तुति देखी थी। विवेकानन्द जयंती समारोह के मंच पर उस नाटक की प्रस्तुति का न्योता दिया था उन्होंने। मेरे लिए तो जैसे मुँह माँगी मुराद मिल गई थी। अपने छात्र कलाकारों को लेकर पहुँच गया था। पता चला कि उस कार्यक्रम में प्रख्यात संगीतकार श्री रवींद्र जैन आ रहे हैं। मुझे तथा मेरे छात्रों को उनके समक्ष कार्यक्रम प्रस्तुत करने का सुअवसर मिला। उसी कार्यक्रम के दौरान रवींद्र जैन ने एक आसु चौपाई गाया था, - 
गन्ना, गंडक और गरीबी। इन सबसे नाता है करीबी।।

     आज जब अपने सेवरही के गन्ना समाचारों को पढ़ता हूँ तो वह चौपाई मेरे कानों में गुँजने लगती है। वाकई सेवरही चीनी मिल अपने पेराई क्षमता और उत्पाद शक्ति के कारण उत्तर-प्रदेश ही नहीं, पूरे देश और एशिया में अपना स्थान रखता है। सेवरही परिक्षेत्र और उससे सटे बिहार प्रांत में लगभग अस्सी प्रतिशत गन्ने की खेती होती है। गरीबी भी इसका कारण है, गंडक भी। गंडक ने पारिस्थिकी पैदा की और गन्ने की ऊपज में अपना योगदान दिया। गरीब किसानों का परिश्रम तो प्रतिवर्ष फूलता है मगर फलता नहीं है। प्रतिवर्ष चीनी मील प्रारंभ होते ही क्षेत्र में गन्ना माफियाओं की सक्रियता बढ़ जाती है। वे किसानों से औने-पौने दाम पर गन्ना खरीद कर क्रेशर तथा चालू चीनी मिलों पर ऊँचे दाम पर सप्लाई करने का खेल शुरू कर देते हैं। असहाय गन्ना किसान पेट की आग मिटाने, तन ढकने, खेती करने और बेटी की शादी-विवाह करने की विवशता में गन्ना माफियाओं के हाथ लुटने को विवश हो ही जाते हैं।
     इंटरनेट और ई-पेपर की सुविधा का लाभ उठाते हुए क्षेत्रीय समाचार पत्रों को मैं लगभग प्रतिदिन पढ़ता हूँ। अभी हाल ही में पढ़ने को मिला कि बीते पेराई सत्र में 20 रुपये प्रति क्विंटल डिफर भुगतान पाने के लिए जद्दो-जहद करने वाले किसान रोश में थे कि चालू सत्र में 40 रुपये डिफर भुगतान की नीति ने उन्हें हतोत्साहित करके रख दिया है। भुगतान में होने वाले विलंब के चलते किसान माफियाओं के चंगुल में सहज चले जा रहे हैं। गन्ना किसान फसल को नकदी मानते रहे हैं, अब यह घाटे का सौदा साबित हो रहा है। क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों ने कहना प्रारंभ किया है कि सरकार तथा चीनी मीलों के ढुलमुल नीति के कारण गन्ना फसल की बोआई एक चैथाई रह गई है। गन्ना की खेती करने वाले कंगाल हो गए हैं। गन्ना किसानों के सामने रवि फसल की बोआई की समस्या खड़ी है। ऐसे में किसान 125 रुपये प्रति क्विंटल की दर से माफियाओं के हाथ गन्ना बेचने को मजबूर हैं।

     आप फेसबुक पर अपने मित्र तथा सेवरही के युवा व्यापार मंडल के अध्यक्ष पप्पू जायसवाल का वाल पढ़ा। गन्ना, चीनी मील और सेवरही के आपसी नाते को याद कर काफी कोफ्त हुआ। गन्ना से गरीबों का हाल इस जाड़े में जो होता है, वह तो होता ही है, सेवरही के व्यावसायियों और बाजार करने आने वाले ग्रामीणों की दशा भी कब नहीं बिगड़ती। उन्होंने लिखा था कि कब सुधरेगा नगर पंचायत सेवरही के जाम की समस्या। बात भी सही है, जबसे सेवरही गन्ना फैक्ट्री चालू हो जाता है, तब से नगर में जाम होना शुरू हो जाता है। इस जाम से नगर में यातायात पूर्णतः प्रभावित तो होता ही है, इससे आम जनता, किसान, ग्रामीण, व्यापारी, वाहन, स्कूल बस आदि सब ठप हो जाते है। इस नगर के समस्या को दूर करने के लिए कोई भी ठोस तरीका नहीं अपनाया जाता है। इसी समस्या के कारण ही पुरानी पुलिस चैकी चैराहे पर बैजनाथ मद्धेशिया के बारह वर्ष पुत्र का एक्सीडेंट से घर की सामने ही दर्दनाक मृत्यु हो गई। उस घटना के बाद युवा व्यापार मंडल के अध्यक्ष पप्पू जायसवाल, महामंत्री आशीष वर्मा के नेतृत्व में एक आन्दोलन किया गया और मांग रखी गई की पीडि़त परिवार को पाँच लाख रुपये देने के साथ ही सड़क जाम से छुटकारा भी दिलवाने का उपाय किया जाय।  माननीय एस.डी.एम. पंकज वर्मा और सीओ दिनेश सिंह ने दो लाख की देने की अश्वासन दिया और तत्काल जाम से मुक्त कराने के लिए अश्वासन दिया लेकिन उसके बाद भी कई एक्सीडेंट हो चुका। इन्हीं घटनाओं में तीरथ राम पेट्रोल पंप के सामने गन्ना लदी ट्रक एक टेम्पो पर गीर गयी जिसमें चार लोग गंभीर रूप से घायल तथा एक बच्चे और उसके माँ की भी मृत्यु हो गई थी। उस घटना के बाद फैक्ट्री के प्रबंधक के पास तत्कालीन एसओ जसराज यादव ने पुलिस को लेकर फैक्ट्री के अन्दर प्रबन्धक को बुलाने को कहे तो फैक्ट्री के कर्मचारी मील बन्द कर हड़ताल पर चले गए। इधर नगर में एक बार फिर जाम शुरू हो गया है। समस्याओं को न्योता देते हुए तथा नगर को बदहवास करते हुए इस बार पुनः सेवरही चीनी मिल ने गन्ने की पेराई प्रारंभ कर दी है। डीएम ने मिल के डोंगे में गन्ना डालकर इसकी शुरुआत की। डीएम लोकेश एम और सेवरही चीनी मिल के अधिशासी निदेशक शेर सिंह चैहान ने वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच हवन- पूजन किया। इसके बाद मिल के डोंगे में गन्ना डाला। डीएम ने मिल के पैन, कांटे व अन्य स्थानों का निरीक्षण किया। इस दरमियान डीसीओ हरपाल सिंह भी मौजूद थे। मिल प्रबंधन की ओर से किसानों में मिठाई वितरित की गई। इस दौरान कुछ किसानों ने मिठाई लेने से इंकार कर दिया। उनका आरोप था कि मिल किसानों के मेहनत से उपजाए गए गन्ने की बदौलत चलती है। किसानों को यहाँ बुलाकर मिल प्रबंधन को उनकी समस्याएं सुननी चाहिए थीं। पूर्व के पेराई सत्रों में यह व्यवस्था रही है। प्रगतिशील किसानों ने मिल प्रबंधन पर किसानों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। 
     बात फिर से वही आकर झकझोरने लगती है कि आज ग्यारह वर्ष बाद भी गन्ना के कारण किसानों का वजूद तो है, परन्तु कभी गंडक की बाढ़ और कटान परेशान करती है तो कभी गन्ना माफियाओं का वर्चस्व ले डूबता है और अगर कभी कुछ बचता है तो किसानों की समस्याएँ कम नहीं होती। सेवरही की दशा नहीं सुधरती। वादे होते हैं, नेता शोर मचाते हैं, कुछ चिंता भी करते हैं, मगर प्रशासन अपने में मस्त है, गन्ना का पोशाक गरीब किसान आज भी पस्त है। जिन्दगी की गाड़ी रेत पर तो दौड़ पाती ही नहीं, फिर दो कदम चलकर फँस जाती है। गरीबी का बोलबाला पहले सा ही रहता है। सेवरही की सँकरी सड़कें रेंग भी नहीं पाती हैं। गन्ना लदे ट्रैक्टर, बैलगाड़ी और ट्रकों की दुर्घटनाएँ कई मासूमों की जानें लेती रहती हैं। प्रशासन के हजार वादे झूठे सिद्ध होते रहते हैं परन्तु जीवट सेवरही-वासियों की जिन्दगी बदस्तूर चलती रहती है और मेरे कानों में रवींद्र जैन की आसु-चौपाई  गुँजती रहती है।                               (विशेष आभार: पप्पू जायसवाल, सेवरही)
                                                                           -------------

Dec 14, 2014

एक देश का जलावतरण


     कुछ दिन पहले की बात है। यहीं कोई दो माह पहले की। मुझे अपने कार्यक्षेत्र, अपने विद्यालय से एक परियोजना पर काम करने का अवसर मिला था। पर्यावरणीय चिंतन। र्पावरणीय चिंतन पर कुछ काम करते हुए मुझे जलवायु परिर्वतन पर कुछ तथ्य प्रस्तुत करना था। चिंता में सराबोर करने वाले तथ्य। लोगों को सोचने पर विवश करने वाले तथ्य। जीवन की आशाओं का तथ्य। जीवन पर मँडराने वाले ग्रहण का तथ्य। वैचारिक अभिक्रियाओं का तथ्य और विचारशील कर्मठता का तथ्य। उन्हीं तथ्यों और स्रोतों की तलाश में एक सहकर्मी से किरिबाती देश का नाम सामने आया। 
     वास्तव में मैं किरिबाती देश से पूर्णतया अनभिज्ञ था। जब स्रोतों का अध्ययन करने लगा तो पता चला कि किरीबती लगभग तीस से भी अधिक द्वीपों का समूह और एक उठे हुए प्रवाल द्वीप से बना देश है। इसकी राजधानी दक्षिणी तवारा है। भूमध्य रेखा में विस्तारित इस देश के पूर्व से अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा गुजरती है। किरिबाती को स्थानीय भाषा में गिल्बेर्ट्स कहा जाता है। यह नाम यहाँ के मुख्य द्वीप श्रृंखला गिल्बर्ट द्वीप से लिया गया है। किरिबाती 1979 में ब्रिटेन से स्वतंत्र हुआ। यह राष्ट्रमंडल, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक का सदस्य है। 1999 में यह देश संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बन गया। समुद्र से दो मीटर की ऊंचाई पर बसे किरिबाती द्वीप समूह के 32 द्वीपों के अगले 50 साल में समुद्र में समा जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। प्रशांत महासागर में स्थित यह द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन का पोस्टर बन गया है। किरिबाती की पुरानी छवि प्रवाल द्वीपों, ताड़ के पेड़ों, मूंगे की चट्टानों और सामान्य जीवनशैली वाले देश की है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का स्तर बढ़ने की वजह से इसे खतरा पैदा हो गया है।

     स्वतंत्रता की दृष्टि से किरिबाती भले ही एक नवीन देश हो परन्तु इसका इतिहास 3000 ईसापूर्व से माना जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल 811 वर्ग किमी है। यहाँ संसदीय गणतंत्र की सरकार है। यहाँ का राजनैतिक माहौल बड़ा ही शांत और स्वच्छ है। यहाँ के राष्ट्रपति श्री एनोट टोंग तथा उपराष्ट्रपति तेइमा ओनोरिओ है। यहाँ पर जातीय समूहों में 98 प्रतिशत माइक्रोनेशियन जाति के लोग रहते हैं जबकि बाकी दो प्रतिशत में अन्य जातियाँ हैं। 2010 की जनणना के अनुसार यहाँ पर करीब एक लाख तीन हजार पाँच सौ लोग है। इस प्रकार यहाँ की जनसंख्या घनत्व 135 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। किरीबती में किरीबती डालर तथा आस्ट्रेलियन डालर मुद्रा है। किरिबाती एक परोपकारी चिंतन रखने वाला देश है। इस देश का राष्ट्रीय वाक्य है - ते माउरी, ते राओई आओ, ते ताबोमोआ अर्थात् ‘स्वास्थ्य, शांति एवं समृद्धि’। यह द्वीपीय देश धरती की सबसे अधिक आबादी वाली जगहों में से एक है। ताजा अनुमानों के मुताबिक यहाँ करीब एक लाख दस हजार लोग रहते हैं। इनमें से आधे लोग दक्षिण तारावा द्वीप पर ही रहते हैं। इस प्रकार दक्षिण तरावा किरिबाती की राजधानी होने के साथ-साथ देश का सबसे बड़ा नगर है। यहाँ की राजभाषा अंग्रेजी के साथ ही जिलिबर्टीज भी है। 

     ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद किरिबाती की आबादी तेजी से बढ़ी है। यहाँ के गाँव अब आपस में जुड़ गए हैं। यहाँ सड़क के किनारे और समुद्र के पास भरपूर शहरीकरण हुआ है। यहाँ जमीन की कमी का मतलब है, बहुत कम खेती और अत्यधिक जल। ऐसे में यहाँ के निवासी खाने के लिए आयातित, प्रसंस्कृत और जलीय खाद्य पदार्थों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। किरिबाती में बड़े पैमाने पर आर्थिक पलायन हुआ है। वहाँ दक्षिणी टवारा की ओर पलायित होने का एक यह भी कारण है कि यह देश समुद्र में समाहित होता जा रहा है। बात यह सामने आयी कि पर्यावरणीय परिवर्तन और प्राकृतिक असंतुलन के कारण किरिबाती अगले पचास वर्षों में पूर्णतः समुद्र में समा जाएगा। देश का जलावतरण हो रहा है और वहाँ के लोग जीवन बचाने की आशा में पलायित हो रहे हैं। यहाँ के राष्ट्रपति का सकारात्मक सोच और वैश्विक मंच से लगातार प्रश्न उठाए जाने के कारण लोगों की जिजीविषा बढ़ने लगी है। राष्ट्रपति एनोटे टोंग माने हैं कि ‘‘बाहरी द्वीपों पर रहने वाले समुदाय प्रभावित हुए हैं। हमारा एक गाँव डूब गया। बहुत सी जगह समुद्र का पानी तालाब के साफ पानी में मिल गया। यह फसलों को भी प्रभावित कर रहा है।’’ उनका कहना है कि ‘‘ऐसा देश  के बहुत से द्वीपों पर हो रहा है। यह कोई अलग सी घटना नहीं है। गंभीर किस्म के जल सैलाबों को देखा गया है। यह सब वास्तविकता है, जिसका हम सामना कर रहे हैं, चाहें वो जलवायु परिवर्तन से प्रेरित हो या न हों।’’ बात यह है कि आबियांग तारावा के उत्तर में स्थित कम आबादी वाला द्वीप है, जहाँ का एक गाँव समुद्र की लहरों में समा गया है। 
     किरिबाती के राष्ट्रपति एनोटे टोंग ने विश्व मंच से अनेक बार पर्यावरणीय परिवर्तन पर अपनी आवाज़ बुलंद की है। वे विश्व के विकसित देशों से अपने नागरिकों के जीवन के लिए जमीन की माँग की है। उनका मानना है कि आज जो विश्व समुदाय के समक्ष जलवायु परिवर्तन से खतरा उत्पन्न हुआ है, उसके पीछे औद्योगिक विकास और प्रकृति का दोहन है। चीन का उदाहरण देकर यह बात सिद्ध किया जा सकता है कि औद्योगिक विकास के लिए बहुत से देश पर्यावरण की चिंता ही नहीं करते। अगर किरिबाती में जो भी खेती की जमीन है, तो वहाँ की मुख्य उपज में नारियल और प्रशांत महासागर द्वीपों में उगने वाला एक गोलाकार फल ब्रेडफ्रूट है। हालांकि यहाँ फसलों के बहुत लंबे समय तक टिके रहने पर संदेह है जिसके कारण न चाहते हुए भी इस देश ने प्रमुख खाद्य निर्यातक बनने के लिए सहायता एजेंसियों के प्रस्ताव लेना शुरू कर दिया है।  इस प्रकार किरिबाती के लिए भोजन, आवास और जीवन, सबकी चिंता समान रूप से मुँह बा रही है। 

      अब देश में खाद्य सुरक्षा की कमी के बाद भी दक्षिण तारावा एक तरह से सुरक्षा का आभास दे रहा है। इसका अधिकांश भाग समुद्री दीवारों से सुरक्षित किया गया है। इन दीवारों को स्थानीय लोगों ने आसपास खुदाई करके बनाया है। यहाँ सड़कों की सुरक्षा के लिए सीमेंट से बनी नई दीवार बालू के बोरों से भरी है। दुर्भाग्य से समुद्र से सुरक्षा के दोनों तरीकों का हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। मगर जीवन की तलाश में मानव लाभ-हानि की चिंता कहाँ करता। वह तो बस हर लाभ पर हँता है और हर हानि पर रोता है। राष्ट्रपति टोंग कहते हैं कि जनसंख्या का दवाब और पर्यावरण क्षरण तात्कालिक समस्याएं हैं। ऐसे में यहाँ जिंदा रहने की कोशिश कर रहे लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन पर एक परिप्रेक्ष्य पाना कठिन है। उनके पास ऐसी चीजों का सामना करने के लिए संसाधन नहीं हैं, जो उनके जीवन को सीधे प्रभावित नहीं करेंगी। हम पर खतरा मंडरा रहा है। हम फ्रंट लाइन पर हैं। 
      बदलते पर्यावरण और प्रकृति के दोहन का प्रभाव एक मात्र किरिबाती के द्वीपों पर ही नहीं पड़ रहा है। जब मैं अपने प्रोजेक्ट की तैयारी में पढ़ाकू कीड़ा बना हुआ था तब पता चला कि आज दुनिया के अनेक द्वीपों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण समुद्र का बढ़ता जलस्तर है। वैज्ञानिकों द्वारा आशंका व्यक्त किया जा रहा है कि कहीं माॅरीशस, लक्षद्वीप और अंडमान द्वीपसमूह के साथ श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों का अस्तित्व भी समाप्त हो सकता है। एक आकलन के अनुसार अब तक पूरी दुनिया में करीब 2.5 करोड़ लोग द्वीपों के डूबने के कारण विस्थापित हुए हैं। यदि राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान की मानें तो खाड़ी के द्वीपों में से ज्यादातर के हालात ठीक नहीं हैं। पर्यटन के लिहाज से बड़े केन्द्र और खूबसूरत देशों में शुमार मालदीव पर भी खतरा मंडरा रहा है। बताया जाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मालदीव ने आबादी को नई जगह बसाने की योजना बनायी है और इसके लिए जमीन खरीदने पर भी विचार कर रहा है। अब तक समुद्र के जलस्तर बढ़ने से दुनिया में 18 द्वीप पूरी तरह जलमग्न हो चुके हैं। 54 द्वीपों के समूह सुन्दरवन पर भी खतरा मंडरा रहा है। आकलैंड, न्यूजीलैंड प्रशांत द्वीप क्षेत्र में स्थित 10 लाख की आबादी वाला किरिबाती देश के द्वीप भी संकट में है। समुद्र का पानी दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के इस देश को पाट सकता है। किरिबाती का उच्चतम बिंदु समुद्र तल से केवल दो मीटर अधिक है। अभी किरिबाती के लोगों को बसाने की खातिर 6000 एकड़ जमीन खरीदकर फिजी में शिफ्ट करने की योजना पर भी काम चल रहा है।  
     दरअसल मौजूदा हालात में 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की रफ्तार से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है जिसके कारण 2100 तक चार डिग्री तक दुनिया का तापमान बढ़ जायेगा। इसके कारण समुद्र के जलस्तर में दिनोंदिन बढ़ोतरी का अहम कारण ग्लोबल वार्मिंग है, जिसके चलते द्वीपों पर डूबने का खतरा मंडरा रहा है। दुनिया के वैज्ञानिकों ने आशंका व्यक्त की है कि यदि समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी की यही रफ्तार रही तो 2020 तक 14 द्वीप पूरी तरह खत्म हो जाएंगे। नतीजन जहाँ मुंबई, शंघाई, बीजिंग, न्यूयार्क जैसी बड़ी आबादी वाले तटीय शहरों के लिए खतरा बढेगा, वहीं बाढ़, सूखा तूफान, हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की तादाद में भी बढ़ोतरी होगी। संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर से छोटे-छोटे द्वीपों पर रहने वाले तकरीब दो करोड़ लोग साल 2050 तक विस्थापित हो चुके होंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि 21वीं सदी के अंत तक समुद्र के जलस्तर में एक मीटर की बढ़ोतरी होगी। इस बारे में असल दिक्कत यह है कि कार्बन उत्सर्जन के मामले में अमीर देश भारत और चीन जैसे देशों पर ज्यादा बोझ डालने की कोशिश में हैं। 
     जलवायु परिवर्तन से मानवीय, पर्यावरणीय और वित्तीय नुकसान बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा है। इसके लिए पूरे विश्व को कार्बन उत्सर्जन कम करना होगा। जीवन की आशा बची रहेगी। इसके लिए सबको मिलकर काम करना पड़ेगा। मिलकर प्रयास करना पड़ेगा। धरती पर बढ़ते तापमान के खतरे के लिए, पारिस्थितिकी संतुलन के लिए, समुद्री द्वीपों के संरक्षण के लिए कानून बनाना होगा। जब हम मिलकर प्रयास करेंगे तभी बचाव की उम्मीद बचायी जा जा सकती है। किरिबाती जैसे एक देश को उसकेे जलावतरण से उसे बचाया जा सकता है।
                                                            ............................