रोटी के लिए
आत्मा से समझौता.
दुनिया में आदमी को
पहनना ही पड़ता है
कई मुखौटा.
मुखौटों के रास रंग से
रोटियों की गोलाई बढ़ाने के लिए
नग्नता का दायरा
लांघना भी एक कला ही है,
मैं ऐसा नहीं कर सकता
तब, मेरे जैसे छोटे कलाकारों को
समय ने छला ही है.
रोटी के अभाव में
मुरझाया चेहरा कोसता है,
क्योंकि उसके अनुसार
दुनिया है समझौते से,
मन प्रसन्न
और आह्लादित हो कर
उद्घोषणा कर रहा -
नफरत है ऐसे मुखौटे से..
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- केशव मोहन पाण्डेय
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